________________
श्री उपासकदशांग सूत्र
भावार्थ - देव ने चुलनीपिता श्रमणोपासक को जब इस प्रकार निर्भीक देखा तो उसने दूसरी-तीसरी बार कहा - मौत को चाहने वाले चुलनीपिता! यदि तुम अपने व्रत को नहीं तोडोगे तो मैं तुम्हारे मंझले पुत्र को घर से उठा लाऊंगा और तुम्हारे बड़े बेटे की तरह तुम्हारे सामने उसको मार डालूंगा। इस पर भी चुलनीपिता जब अविचल रहा तो देव ने वैसा ही किया । तीसरी बार में छोटे पुत्र को मार डालने की धमकी दी । चुलनीपिता निर्भिक रहा तो देव ने उस छोटे लड़के को भी मार कर यावत् उबलते हुए रक्त मांस से उसके देह का सिंचन किया । चुलनीपिता ने यह तीव्र वेदना समभाव पूर्वक सहन की ।
मातृवध की धमकी (२८)
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पास, पासित्ता चउत्थं-पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - "हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया ४ जइ णं तुमं जाव ण भंजसि तओ अहं अज जा इमा तव माया भद्दा सत्थवाही देवयगुरुजणणी दुक्करदुक्करकारिया तं ते साओ गिहाओ णीमि, णीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि जहा णं तुमं अट्टदुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । "
१०४
कठिन शब्दार्थ - देवयगुरुजणणी - देव और गुरु सदृश पूजनीय, दुक्करदुक्करकारिया - अत्यंत दुष्कर कार्य करने वाली ।
हे मृत्यु
भावार्थ - चुलनीपिता श्रमणोपासक को निर्भय देख कर चौथी बार देव ने कहा को चाहना वाले चुलनीपिता! यदि तू धर्मच्युत न होगा तो मैं तेरी माता भद्रा सार्थवाही जो तेरे लिये देव गुरु के समान पूजनीय तथा दुष्कर कार्य करने वाली है, को घर से यहां ले आऊंगा और यहां लाकर तेरे सामने उसे मार कर उबलते हुए तेल की कडाई में तल कर मांस खण्डों से तेरे शरीर को सिंचूंगा जिससे तू आर्त्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर अकाल में ही मृत्यु प्राप्त करे
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में माता की देव तुल्य पूजनीयता एवं सम्मानीयता प्रकट करने के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org