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तीसरा अध्ययन श्रमणोपासक चुलनीपिता - मंझले एवं छोटे पुत्र का वध
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तणं से देवे चुलणीपियं समणोदासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्वंपि तच्चपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हं भो चुलणीपिया ! समणोवासया ! तं चेव भणइ, सो जाव विहरइ ।
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भावार्थ जब देव ने चुलनीपिता श्रमणोपासक को निर्भय देखा तो दो - तीन बार उपर्युक्त वचन कहे । पर चुलनीपिता पूर्ववत् निर्भीकता के साथ धर्मध्यान में स्थित रहा।
ज्येष्ठ पुत्र का वध
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स जेट्ठ पुत्तं गिहाओ णीणेइ, णीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचइ ।
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भावार्थ . देव ने चुलनीपिता को जब इस प्रकार निर्भय देखा तो वह अत्यंत क्रोधि हुआ और चुलनीपिता के सबसे बड़े पुत्र को घर से लाया और उसके सामने उसे मार डाला, मार कर उसके तीन टुकड़े करके उबलते हुए तेल की कडाई में डाल कर मांस खण्डों को तला और उस असह्य उष्ण रक्तमांस से चुलनीपिता के शरीर का सिंचन किया।
तए·णं से चुलणीपिया समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासे । भावार्थ - चुलनीपिता ने उस तीव्र वेदना को यावत् शांतिपूर्वक सहन किया ।
मंझले एवं छोटे पुत्र का वध
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चंपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हं भो चुलणीपिया! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया! जाव ण भंजसि तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ णीमि, णीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता जहा जेट्ठ पुत्तं तहेव भाइ, तहेव करेइ । एवं तच्वंपि कणीयसं जाव अहियासेइ ।
कठिन शब्दार्थ - मज्झिमं - मध्यम (मंझले), कणीयसं
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कनिष्ठ ।
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