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________________ १०० श्री उपासकदशांग सूत्र ---------000-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-02-28-08-19-08-10-0-0-0-0-12-2-8---10-2 ___ भावार्थ - गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा - हे भगवन्! कामदेव उस देवलोक से आयु, भव एवं स्थिति के क्षय होने से देव शरीर का त्याग कर कहां जायेंगे? कहां उत्पन्न होंगे? भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! वहां से वे महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध तथा मुक्त होंगे। विवेचन - प्रस्तुत अध्ययन में अनेक पाठों का संकोच हुआ है। वहां सारा वर्णन आनंदजी के समान जानना चाहिये। अध्ययन के उपसंहार के रूप में 'णिक्खेवो' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण हुआ है - ___“एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं बिइयस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्तिबेमि।" अर्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जंबू! सिद्धि प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उपासकदशांग सूत्र के द्वितीय अध्ययन का यही भाव-अर्थ फरमाया, जो मैंने तुम्हें कहा है। उपसंहार - दृढ़ धर्म श्रद्धा व्यक्ति को महान् बनाती है। धर्म व्यक्ति को प्रतिकूलताओं में सहन करने की क्षमता और समझ प्रदान करता है। दृढ़ श्रद्धावान् व्यक्ति ही विकट से विकट परिस्थिति में स्थिर और स्वस्थ रह सकता है। इस प्रकार धर्म श्रद्धा इहलोक और परलोक की दृष्टि से लाभ का कारण है, आध्यात्मिक विकास का प्रथम सोपान है। धर्म श्रद्धा जीवन जीने की अनोखी कला सिखाती है, यह कामदेव के प्रस्तुत कथानक से समझा जा सकता है। ॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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