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________________ द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - भविष्य कथन *-0-0-0-0-0-0--22-08-00-00-00-00-00-00-00-00-00-08-28-10-08-08-10-19-10-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-00-00-00-00-00 स्वर्ग गमन (२४) . तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपजित्ताणं विहरइ तए णं से कामदेवे सममोवासए बहूहिं (सीलव्वएहिं) जाव भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासेत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहिँ भत्ताई अणसणाए छे देत्ता आलोइयपडिक्कं ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थिमेणं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, कामदेवस्सऽवि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। भावार्थ - कामदेव श्रमणोपासक ने श्रावक की पहली प्रतिमा यावत् ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। उपवास, बेला, तेला, अठाई, अर्द्ध-मासखमण, मासखमण आदि से आत्मा को भावित की। बीस वर्ष तक श्रावक-पर्याय का पालन किया और एकमासिकी संलेखना से साठ भक्त का छेदन किया तथा दोषों की आलोचना-प्रतिक्रमण कर के समाधियुक्त काल कर के प्रथम देवलोक 'सौधर्म कल्प' के सौधर्मावतंसक महाविमान के उत्तरपूर्व-दिशा-भाग में अरुणाभ' नामक विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ अनेक देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है, तदनुसार कामदेव भी चार पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए। भविष्य कथन से णं भंते! कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ, कहिं उववजिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ (जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ) ॥ णिक्खेवो॥ ॥ बीयं अज्झयणं समत्तं॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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