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________________ श्री उपासकदशांग सूत्र **--*-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-*-8-28-0-0-0-0-0-0-0-00-* एवं खलु देवाणुप्पिया! सक्के देविंदे देवराया जाव सक्कंसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं जाव अण्णेसिं च बहणं देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ। कठिन शब्दार्थ - सक्के - शक्र-शक्तिशाली, देविंदे - देवेन्द्र - देवों के परम ईश्वरस्वामी, देवराया - देवराज, आइक्खइ - आख्यात किया, भासइ - भाषित, पण्णवेइ - प्रज्ञप्त, परूवेइ - प्ररूपित। भावार्थ - हे देवानुप्रिय! एक बार सौधर्म देवलोक के अधिपति शक्रेन्द्र महाराज सौधर्मावतंसक विमान की सुधर्मा-सभा में चौरासी हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों, चार लोकपालों, आठ अग्रमहिषियों आदि तथा अन्य देवी-देवताओं के मध्य अपने सिंहासन पर विराज रहे थे। उन सब के समक्ष शक्रेन्द्र ने यह प्ररूपणा की कि - ___ एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहियबम्भचारी जाव दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ, णो खलु से सक्का केणइ देवेण वा दाणवेण वा जाव गंधव्वेण वा णिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा। कठिन शब्दार्थ - सक्का - समर्थ, दाणवेण - दानव द्वारा; गंधव्वेण - गंधर्व द्वारा। भावार्थ - हे देवो! जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में चम्पा नामक नगरी है। वहाँ कामदेव श्रमणोपासक पौषधशाला में रहा हुआ, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा फरमाई गई धर्मप्रज्ञप्ति का यथावत् पालन करता हुआ धर्मध्यान कर रहा है। किसी भी देव, दानव, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व में यह सामर्थ्य नहीं कि वह कामदेव श्रमणोपासक को निग्रंथ-प्रवचन से चलित कर सके, क्षुभित कर सके, विपरिणामित कर सके। तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमढं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे, अरोएमाणे इहं हव्वमागए, तं अहो णं देवाणुप्पिया! इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पिया! इड्ढी जाव अभिसमण्णागया, तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! खमंतु मज्झ देवाणुप्पिया! खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया! णाई भुजो करणयाए तिकट्ठ पायवडिए पंजलिउडे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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