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________________ १२ *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-12-2-*-*-*-18-28-12-2-*-*-*-*-12-12-28-12--12--00-00-0-0-0-0-00-00-12 श्री उपासकदशांग सूत्र पच्छिमभाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, वेढेत्ता तिक्खाहिं विसपरिगयाहिं दाढाहिं उरंसि चेव णिकुट्टेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ । ___ भावार्थ - सर्परूपधारी उस देव द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भी कामदेव श्रावक निर्भीक रहे तो देव ने दूसरी तीसरी बार उपरोक्त वचन कहे पर कामदेव पूर्ववत् उपासना में रत रहे। सर्परूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त कुपित हुआ और सरसराहट करता हुआ कामदेव के शरीर पर चढ़ गया। चढ़ कर पिछले भाग से उसके गले में तीन दृढ़ आटे (लपेट) लगाये, लपेट लगा कर अपने तीखे विषपूर्ण दांतों से उसकी. छाती (हृदय) पर डंक मारा-डसा, जिससे कामदेव को अत्यंत भयंकर वेदना हुई। कामदेव श्रावक ने उस तीव्र वेदना को समभावों के साथ सहन किया। देव का पराभव (२१) तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता जाहे णो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं णिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते तंते. परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ। भावार्थ - (यक्ष, हाथी और सर्प रूप तीन प्रकार से उपसर्ग देने के बाद भी) जब सर्प रूपधारी देव ने कामदेव श्रमणोपासक को निर्भय यावत् धर्मध्यान में लीन देखा और निग्रंथप्रवचन से लेश-मात्र भी चलित न कर सका, क्षुभित नहीं कर सका, विपरिणामित नहीं कर सका, तब थक कर त्रास को प्राप्त हुआ और क्लांत होकर शनैः-शनैः पौषधशाला से बाहर निकला। उसने सर्प का रूप त्याग कर देवरूप की विकुर्वणा की। हारविराइयवच्छं जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाईयं दरिसणिजं अभिरूवं पडिरूवं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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