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________________ श्री उपासकदशांग सूत्र *-00-00-00-00-00-00-0-0-0-0-0-00-00-00-00-00-00-0-0-0 अविचल देखा तो देव ने कुपित हो कर कामदेव को सूंड से पकड़ा और पकड़ कर ऊँचा आकाश में उछाला और उछाल कर नीचे गिरते हुए को अपने तीक्ष्ण और मूसल जैसे दांतों से झेला और झेल कर नीचे धरती पर पटक कर तीन बार पांवों तले कुचला। इससे कामदेव को असह्य वेदना हुई परन्तु कामदेव ने इस वेदना को समभाव से सहन की। सर्प रूप देव उपसर्ग (२०) तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं जाहे णो संचाएइ जाव सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ-उग्गविसं चण्डविसं घोरविसं महाकायं मसीमूसाकालगं णयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंजणिगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयलचंचलजीहं धरणीयलवेणिभूयं उक्कडफुडकुडिलजडिलकक्कसवियडफडाडोवकरणदच्छं लोहागरधम्ममाणधमधमेतघोसं अणागलियतिव्वचंडरोसं सप्परूवं विउव्वइ, . विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी। कठिन शब्दार्थ - उग्गविसं - उग्र विष, चण्डविसं - चण्डविष, घोरविसं - घोरविष, महाकाय - विशाल आकार का, मसीमूसाकालगं - स्याही और मूस-धातु गलाने के पात्रजैसा काला, णयणविसरोसपुण्णं - विष और क्रोध से भरे नेत्र, अंजणपुंजणिगरप्पवासं - काजल के ढेर जैसा, लोहियलोयणं - लाल आंखें, जमलजुयलचंचलजीहं - चंचल और लपलपाती दोनों जीभे, धरणीयलवेणिभूयं - धरती की वेणी-चोटी जैसा, उक्कड-फुड-कुडिलजडिल-कक्कस-वियड-फडाडोवकरणदच्छं - उत्कट (उग्र) स्फुट (देदीप्यमान) कुटिल, जटिल, कर्कश विकट फन फैलाए हुए, लोहागरधम्ममाणधमधमेंतघोसं - लुहार की धौंकनी की तरह धमधमायमान शब्द करता हुआ, अणागलियतिव्वचंडरोसं - प्रचण्ड क्रोध रोके नहीं रुकता। भावार्थ - हाथी के रूप से जब देव कामदेव को धर्म से न डिगा सका, तो शनैः-शनैः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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