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________________ ८८ श्री उपासकदशांग सूत्र चलणं वीसइणक्खं अल्लीणपमाणजुत्तपुच्छं मत्तं मेहमिव गुलगुलेंतं मणपवणजइणवेगं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्विइ, विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी। ___ कठिन शब्दार्थ - सत्तंगपइट्टियं - सुपुष्ट सात अंगों (चार पैर, सूंड, जननेन्द्रिय, पूंछ) से प्रतिष्ठित, सम्मं संठियं - देह रचना सुगठित, सुजायं - सुंदर, पुरओ - आगे, उदग्गं - उदग्र-ऊंचा, पिट्ठओ - पीछे, वराहं - सूअर, अयाकुच्छिं - बकरी की कुक्षि, पलंबलंबोदराधरकरं - नीचे का होठ और सुण्ड लम्बे, अब्भुग्गय मउल मल्लिया विमल धवलदंतं - मुंह से बाहर निकले हुए दांत बेले की अधखिली कली के समान उजले और सफेद, कंचणकोसीपविट्ठदंतं - सोने की म्यान में प्रविष्ट दांत यानी सोने की खोल चढ़ी हुई, आणामिय-चाव-ललिय संवलियग्ग-सोंडं - सूंड का अगला भाग खींचे हुए धनुष की तरह सुंदर रूप से मुडा हुआ, कुम्मपडिपुण्णचलणं - कछुए के समान प्रतिपूर्ण-परिपुष्ट पैर, वीसइणक्खं - बीस नाखून, अल्लीणपमाणजुत्तपुच्छं - सुंदर तथा प्रमाणोपेत पूंछ, मत्तं - उन्मत्त, मेहमिव - बादल की तरह, गुलगुलेंत - गर्जन करता हुआ, मणपवणजइणवेगं :मन और पवन के वेग को जीतने वाला। ___भावार्थ - वह हाथी चार पांव, सूंड, पूंछ और लिंग ये सातों अंग भूमि का स्पर्श करते ... थे, इस प्रकार वह हाथी सप्तमांग प्रतिष्ठित था। अंगोपांग सुन्दर और प्रमाणोपेत थे, आगे की ओर मस्तक ऊँचा था, पृष्ठ भाग सूअर के समान पुष्ट था, उसकी कुक्षि बकरी के समान अलंब थी, गजानन के समान होठ लम्बे और लटक रहे थे, दाँत मल्लिका (नवीन विकसित बेला) के फूल के समान स्वच्छ श्वेत तथा स्वर्ण की चूड़ियों वाले थे, कुछ नमाए हुए धनुष के समान चपल सूंड का अग्रभाग था, कछुए के समान संकुचित चरण थे, बीसों नाखून थे, पूंछ भी प्रमाणोपेत थी, श्रावण के बादलों के समान गम्भीर गर्जना करता हुआ मन एवं पवन के समान शीघ्र-गति युक्त हाथी का रूप बना कर कामदेव श्रमणोपासक के समक्ष आया और कामदेव श्रमणोपासक से कहने लगा। ___हं भो कामदेवा! समणोवासया! तहेव भणइ जाव ण भंजेसि, तो ते अज अहं सोण्डाए गिण्हामि, गिण्हित्ता पोसहसालाओ णीणेमि, णीणेत्ता उड्ढे वेहासं उव्विहामि, उब्विहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छित्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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