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________________ द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - हस्ती रूप से घोर उपसर्ग **---*-*-*-*---*-*-02-2-8-08-08-12-12-12-12-12--04-28-32-28-12-02-02-08-10-08-08-19-12-00-00-8-m-08-04- कठिन शब्दार्थ - तिवलियं - त्रिवलिक-तीन बल (सल), भिउडिं - भृकुटि, दुरहियासंदुसह्य, अहियासेइ - सहन किया। भावार्थ - पिशाच रूप देव ने कामदेव श्रावक को निर्भय भाव से धर्म ध्यान में रत देखा तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट पर तीन सल बन गए, भृकुटि तन गई और अपने नील कमल के समान उस तीक्ष्ण धार वाले खड्ग से शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिये। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र तथा दुःसह वेदना को समभाव से सहन किया। हस्ती रूप से घोर उपसर्ग : (१९) तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे णो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं णिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते तंते परितंते सणियंसणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ। . कठिन शब्दार्थ - संते - श्रान्त, तंते - क्लान्त, परितंते - खिन्न, सणियं - धीरे, पच्चोसक्कइ - हटता है, दिव्वं - दिव्य, विप्पजहइ - त्याग करता है, हत्थि रूवं - हस्ति रूप की, विउव्वइ - विकुर्वणा करता है। - भावार्थ - उस पिशाच रूपधारी देव ने कामदेव को भय रहित यावत् धर्मध्यान करते देखा। जब वह उन्हें निग्रंथ-प्रवचन से चलित, क्षुभित और विपरिणामित नहीं कर सका, तो वह लज्जा और ग्लानि से थक कर शनैः-शनैः पौषधशाला से बाहर निकला। उसने पिशाच रूप त्याग कर एक महान दिव्य हाथी का रूप बनाया। सत्तंगपइट्ठियं सम्मं संठियं सुजायं पुरओ उदग्गं पिट्ठओ वराहं अयाकुच्छिं अलंबकुच्छिं पलंबलंबोदराधरकरं अब्भुग्गयमउलमल्लियाविमलधवलदंतं कंचणकोसीपविट्ठदंतं आणामियचावललियसंविल्लियग्गसोण्डं कुम्मपडिपुण्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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