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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - गौतम स्वामी का समागम ७३ **-*-*-10-19-19-08-10-08-08-00-00-00-08-08-28-02-8-12-08-10-08-2-10-19-10-08-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-08--28-08-20कर जब वाणिज्यग्राम के कोल्लाक सन्निवेश के न अधिक दूर न अधिक निकट से चल रहे थे तो बहुत से लोगों को बात करते हुए सुना। वे आपस में यों कह रहे थे - हे देवानुप्रियो! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अंतेवासी आनंद नाम के श्रमणोपासक पौषधशाला में मृत्यु की चाहना न करते हुए अंतिम संलेखना स्वीकार कर विचर रहे हैं।
तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढें सोचा णिसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए ४ - 'तं गच्छामि णं आणंदं समणोवासयं पासामि' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे जेणेव आणंदे समणोवासए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छद।
. भावार्थ - अनेक लोगों से यह बात सुनकर गौतम स्वामी के मन में ऐसा भाव, चिंतन, विचार या संकल्प उठा - मैं आनंद श्रावक के पास जाऊं और उसे देखू। ऐसा सोच कर वे जहाँ कोल्लाक सन्निवेश था जहाँ पौषधशाला थी, जहाँ श्रमणोपासक आनंद थे वहाँ गए।
तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठ, जाव हियए भगवं गोयमं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - ‘एवं खलु भंते! अहं इमेणं उरालेणं जाव धमणिसंतए जाए, णो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउन्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवंदित्तए, तुब्भे णं भंते! इच्छाकारेणं अणभिओएणं इओ चेव एह, जा णं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाएसु.वंदामि णमंसामि' तए णं से भगवं गोयमे जेणेव आणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छद।
कठिन शब्दार्थ - तिक्खुत्तो - तीन बार, अभिवंदित्तए - वंदना करने में, इच्छाकारेणंइच्छा पूर्वक, अणभिओएणं - अनभियोग से-बिना किसी दबाव के, पाएसु - चरणों में। ..
भावार्थ - आनंद श्रमणोपासक भगवान् गौतम स्वामी को आते हुए देख कर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वंदन नमस्कार कर बोले - हे भगवन्! मैं घोर तपस्या से इतना कृश हो गया हूँ कि मेरे शरीर की नाड़ियाँ दिखने लगी है इसलिए देवानुप्रिय के पास आकर तीन बार मस्तक झुका कर चरणों में वंदना करने में असमर्थ हूँ अतः आप इच्छापूर्वक मेरे सन्निकट पधारने की कृपा करें तो मैं तीन बार मस्तक झुका कर आप देवानुप्रिय के चरणों में वंदना नमस्कार कर सकूँ। तब गौतम स्वामी जहाँ आनंद श्रमणोपासक थे वहां गये। उनके निकट पधारे।
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