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________________ मृषावाद *******00000**************************************************** नास्तिक लोग नरक तिर्यंच मनुष्य और देवलोक भी नहीं मानते और सिद्ध गति के प्रति भी ये नास्तिक ही हैं। ये लोग कहते हैं कि माता-पिता का नाता भी नहीं है। उत्पत्तिमात्र कारण से माता-पिता का नाता मानना और उनको सेव्य बतलाना असत्य है। मनुष्यादि की उत्पत्ति भी स्वभाव से ही होती है। उत्पन्न होने वाला अपने स्वभाव से किसी भी स्त्री-पुरुष के योग से उत्पन्न हो सकता है। इसमें मातापिता की कल्पना करना और उनका ऋण मानकर सत्कार-सेवादि करना व्यर्थ है। नास्तिकों का उपरोक्त कथन भी असत्य है। क्योंकि उत्पत्ति तो अन्य सचित्त-अचित्त पदार्थों की भी होती है, जैसे-शरीर से यूका (जू) लीख, मांकड़, नारू, कृमि आदि सचेतन जीव भी उत्पन्न होते हैं और मल-मूत्र-श्लेष्मादि अचित्त पदार्थ भी। किन्तु इन सबके प्रति जनक की पुत्र-भावना-वात्सल्य नहीं होता। पुत्र के प्रति गर्भकाल से ही हितकामना, स्नेह-सम्बन्ध एवं अपनत्व रहता है। इसी भावना से माता-पिता, पुत्र का पालन-पोषण और रक्षण करते हैं। सन्तान के हित के लिए चिन्तिन रहते और अपना भोग देते हैं। अतएव माता-पिता की श्रेष्ठता सेव्यता एवं पूज्यता मानना उचित ही है। यदि नास्तिकों को माता-पिता का स्नेह एवं वात्सल्य प्राप्त नहीं होता, तो वे यूका, मत्कुण और कृमि के समान तड़पकर मर जाते। उनके खान-पान, वस्त्र, औषधि एवं शिक्षादि से पोषण, रक्षण एवं संवर्धन का कार्य नहीं होता। अतएव माता-पिता और उनके प्रति सन्तान के कर्तव्य तथा उसका फल मानना उचित एवं सत्य है। 'नियतिवादी' - नियतिवाद को 'दैव' या 'भवितव्यतावाद' भी कहते हैं। नियतिवादी नास्तिक कहते हैं कि - पुरुषार्थ, कर्म, काल, स्वभावादि से कुछ भी कार्य नहीं होता, जो भी कार्य होता है, वह भवितव्यता से ही होता है। कहा है कि - "प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः? सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ले, नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः॥" - वही होता है जो नियति के बल से प्राप्त होने योग्य है, चाहे वह शुभ हो या अशुभ। प्राणी चाहे कितना ही प्रयत्न करे, जो होने वाला है, वह अवश्य होता है और नहीं होने वाला कदापि नहीं होता। ..अकेली भवितव्यता को ही सबकुछ मानकर यह वादी, पुरुषार्थ आदि सभी कारणों का निषेध करता है। इसका तर्क है कि यदि पुरुषार्थ ही से सब कुछ होता है, तो पुरुषार्थ तो सभी लोग करते हैं, फिर फल सबको समान रूप से क्यों नहीं मिलता? सभी उद्यमी मनुष्य सुखी ही होना चाहिए, दुःखी कोई नहीं रहना चाहिए। बहुत-से लोग उद्योग करते हुए भी दुःखी देखे जाते हैं। इसका यही कारण है कि नियति उनके अनुकूल नहीं है। नियति - भवितव्यता को अन्यथा करने की शक्ति किसी में भी नहीं है। यह सर्वोपरि एवं स्वयंभू है। यथा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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