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________________ ७२ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०२ ********** ************************************************** . प्रजापति का सृष्टि सर्जन पयावइणा इस्सरेण य कयं त्ति केई, एवं विण्हुमयं कसिणमेव य जगं त्ति केइ, एवमेगे वयंति मोसं एगे आया अकारओ वेदओ य सुकयस्स दुक्कयस्स य करणाणि कारणाणि सव्वहा सव्वहिं च णिच्चो य णिक्किओ णिग्गुणो य अणुवलेवओ त्ति विय एवमाहेसु असब्भावं। शब्दार्थ - पयावइणा - प्रजापति-ब्रह्मा ने, य - और, इस्सरेण - ईश्वर ने, कयंति - किया-लोक बनाया, केइ - कोई, एवं - इसी प्रकार, विण्हुमयं - विष्णुमय, कसिणमेव - समस्त, जगं - संसार, एवमेगे - इसी प्रकार कोई, वयंति - कहते हैं, मोसं - मृषा, एगे - एक, आया - आत्मा, अकारओ - अक्रिय, वेदओ - वेदता-फल भोगता, सुकयस्स - सुकृत, दुक्कयस्स - दुष्कृत, करणाणि - इन्द्रियाँ, कारणाणि - कारण, सव्वहा - सर्वथा, सव्वहिं - सभी काल में, णिच्चो - नित्य, णिक्किओ - निष्क्रिय, णिग्गुणो - निर्गुण, अणुवलेवओ - निर्लेप, एवमाहंसु - इस प्रकार कहते हैं, असब्भावं - असद्भाव। भावार्थ- कोई कहते हैं कि प्रजापति (ब्रह्मा) ने यह लोक बनाया। कोई कहते हैं कि ईश्वर ने लोक का निर्माण किया। कोई कहते हैं-यह सारा जगत् विष्णुमय है। कोई कहते हैं कि आत्मा एक ही है। वह अक्रिय है और सुकृत-दुष्कृत का फल भोगता है। इन्द्रियाँ पुण्य-पाप की कारण हैं। आत्मा सभी काल में सर्वथा नित्य, निष्क्रिय, निर्गुण और निर्लेप है। इस प्रकार असद्भाववादी कहते हैं। . विवेचन - अंड और स्वयंभू सृष्टि के अतिरिक्त कोई मत,,प्रजापति द्वारा सृष्टि-निर्माण होना बतलाते हैं। इनमें भी मत-भिन्नता है। जैसे - ___ 'कृष्ण-यजुर्वेद तैतरेय ब्राह्मण' में प्रजापति के सृष्टि-निर्माण का क्रम इस प्रकार बतलाया है- . .. "आपो वा इदमग्रे सलिलमासीत्। तेन प्रजापतिरश्रम्यत्। कथमिदं स्यादिति। सो पश्यत्पुष्करपर्ण तिष्ठत्। सोऽमन्यत्। अस्तिवैतत्। यस्मिन्निदमधितिष्ठतीति। स वराहो रूपं कृत्वोपन्यमज्जत्।स पृथिवी मध आर्छत्। तस्या उपहृत्योदमजत्। तत्पुष्करपणेऽप्रथयत्। यदप्रथयत्। तत्पृथिव्यै पृथिवित्वम्।"(१-१-३-७) अर्थ - सृष्टि के पूर्व यह जगत् जलमय था। इसलिए प्रजापति ने तप किया और विचार किया कि यह जगत् किस प्रकार बने। इतने में प्रजापति को एक कमल-पत्र दिखाई दिया। उसे देखकर उन्होंने तर्क किया कि इसके नीचे भी कुछ होना चाहिए। फिर प्रजापति ने वराह (सूअर) का रूप धारण किया और पानी में डुबकी लगाई। ठेठ नीचे भूमि तक पहुंचकर और दाढ़ से कुछ गीली मिट्टी लेकर ऊपर आया। वह मिट्टी कमल-पत्र पर फैलाई। वह मिट्टी पृथ्वी, बन गई। यही पृथ्वी का पृथ्वीपन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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