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________________ **************** असद्भाववादी, पण्णवेंति कहते हैं, मूढा - मूर्ख, संभूओ उत्पन्न हुआ, अंडगाओ - अंडे से, लोगोखुद ने, णिम्मिओ बनाया, एवं इस प्रकार, एवं यह भी, लोक, सयंभूणा - स्वयंभू ने, सयं अलियं मिथ्या, पयंपंति कहते हैं । - - ******** - सद्भाववादी का मत Jain Education International ************ - - भावार्थ - दूसरे कुदर्शनी असद्भाववादी हैं। वे मूढ़यों कहते हैं हुआ है। स्वयंभू ने खुद ने इस लोक का निर्माण किया है, इस प्रकार कहने वाले भी मिथ्यावादी है। विवेचन - वामलोकवादी - लोकायत के बाद दूसरे कुदर्शनी असद्भाववादी का उल्लेख किया है । असद्भाववादी का मत है कि पहले कुछ भी नहीं था । पृथ्वी आदि महाभूत भी पहले नहीं थे । जैसे – “तैत्तिरीय उपनिषद" द्वितीयवल्ली सप्तम अनुवादक के प्रारम्भ में ही कहा है-'असद्धा इदमग्र आसीत्' - यह जगत् पहले असद् रूप था। उपरोक्त असद्भाववादी के सिवाय अन्य कहते हैं कि आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणं । अप्रतर्क्यमविज्ञेयं, प्रसुप्तप्रिव सर्वतः ॥ १॥ तस्मिन्नेकार्णवीभूते, नष्टस्थावरजंगमे । नष्टामरनरे चैव प्रनष्टे राक्षसोरगे ॥ २ ॥ केवलं गव्हरीभूते, महाभूतविवर्जिते । अचिन्त्यात्मा विभूस्तत्र, शयानस्तप्यते तपः ॥ ३॥ तत्र तस्य शयानस्य, नाभेः पद्मं विनिर्गतं । तरुणार्कबिम्बनिभं हृद्यं कांचनकर्णिकम् ॥ ४॥ तस्मिन् पद्मे भगवान्, दण्डयज्ञोपवीतसयुक्तः । ब्रह्मा तत्रोत्पन्नस्तेन जगन्मातरः सृष्टः ॥ ५ ॥ अदिति सुरसंघानां दितिरसुराणां मनुर्मनुष्याणां । विनता विहंगमानां माता विश्वप्रकाराणाम् ॥ ६॥ कद्रुः सरीश्रृपानां, सुलसा माता च नागजातिनां । सुरभिश्चतुष्पदानामिला पुनः सर्वबीजानाम् ॥ ७ ॥ यह जगत् केवल अन्धकार से आच्छादित अर्णव रूप था। इसमें प्रज्ञा, तर्क, लक्षण, योग कुछ भी नहीं था। सर्वत्र सुप्तावस्था के समान सुनसान था। स्थावर, जंगम, देव, मनुष्य, नाग आदि सभी नष्ट थे, यह केवल छिद्ररूप था। इसमें महाभूत भी नहीं थे। इसमें अचिन्त्यात्मा विभु, शैया में रहकर तप करते थे। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ, वह मध्याह्न के सूर्य-बिम्ब के समान सोने की कर्णिकामय था । उस कमल में से दण्ड और यज्ञोपवित युक्त जगत्कर्त्ता भगवान् ब्रह्मा उत्पन्न हुए। उनके द्वारा जगत् की ये माताएं उत्पन्न हुईं-अदिति माता से सुर, दिति से असुर, मनु से मनुष्य, विनता से पक्षी, कद्रु से सरीसृप, सुलसा से नाग, सुरभि से चतुष्पद, पृथ्वी से सभी बीजों की उत्पत्ति हुई । अन्यत्र कहा है कि पहले केवल पानी ही पानी था। उसमें एक अंडा था । उसी अण्डे से स्वयंभू ने इस लोक को बनाया । ६९ - - For Personal & Private Use Only यह लोक अंडे से उत्पन्न 'स्वयंभू' का अर्थ = जो अपने-आप हो । किसी अन्य शक्ति के बिना स्वयं अपने-आप ही बना हो । स्वयंभू शब्द से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी ग्रहण हुआ है। वैष्णव लोग, स्वयंभू का अर्थ 'विष्णु', शैव लोग 'शिव' और सृष्टिवादी 'ब्रह्मा' ग्रहण करते हैं । किन्तु विशेष प्रसिद्धि ब्रह्मा की ही है। अमरकोष में इस प्रकार का अर्थ हुआ है - www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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