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________________ ६० ******** ************************** और कुत्सित मनुष्यत्व में घोरतम दुःखों को भोगता है। पाप का छोटा-सा बीज जब फल रूप में प्रकट होता है, तब कितना भयानक होता है, यह इस अध्ययन में स्पष्ट किया गया है। हिंसा के भयंकर परिणाम का विचार करके सुखार्थीजन, इसके त्यागी बनें और अपनी आत्मा को महान् दुःखों और . दुर्दशा से बचावें तथा स्व- पर रक्षक बनें, यही सूत्रकार महर्षि का उपदेश है।. प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १ *********** कुमानुषत्व मनुष्य सम्बन्धी उच्च गति सुगति एवं शरीर पाकर भी जो विकलांग, अपूर्णांग, नष्टांग, कुरूप, बेडोल, रोगी, सत्वहीन, सामर्थ्यहीन, बुद्धिहीन, अशोभनीय, अदर्शनीय, अश्रवर्णीय, जाति-कुल से हीन एवं अभावों से पीड़ित दशा कुमानुषत्व है। यह मनुष्य सम्बन्धी दुर्गति है। Jain Education International - अल्पसुख - बहुदुःख विषय - सुख की प्राप्ति के लिए अथवा क्रोधादि को सफल बनाकर सन्तुष्ट होने रूप अल्प सुख का कुफल हजारों-लाखों गुणा अधिक - बहुत दुःख भोगना पड़ता है। चंड- प्रचण्ड, क्रोधातुर, उष्णता एवं रक्तिमता से पूर्ण । यम के समान भयानक रौद्र- भयंकर, भीषण, क्रूर । दारुण विपाकयुक्त । क्षुद्र - अधम, नीच, दुष्टजनों द्वारा आचरित । अनार्य - म्लेच्छजन, पापकृत्य करने वाला, अपवित्र एवं अप्रशस्त आचरण वाला, उत्तम एवं श्रेष्ठ आचार से रहित । निर्घुण - पाप के प्रति घृणा से रहित निर्दय । नृशंस - हिंसकता, क्रूरता, कठोरता एवं घातकता युक्त । निष्पिपासक - प्राणियों के प्रति स्नेह - मैत्री भाव से रहित । प्राणियों के दुःख क्लेश एवं संताप की अपेक्षा नहीं रखने वाला । प्राणियों के हित से उदासीन । 7 अधर्मद्वार नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध का प्राणीवध नामक प्रथम अध्ययन सम्पूर्ण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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