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मनुष्य भव के दुःख
मनुष्य भव के दुःख
जेवि य इह माणुसत्तणं आगया कहिं वि णरगा उवट्टिया अधण्णा ते विय दीसंति पायसो विकयविगलरूवा खुज्जा वडभा य वामणा य बहिरा काणा कुंटा पंगुला विउला य मूका य मम्मा य अंधयगा एगचक्खू विणिहयसंचिल्लया वाहिरोगपीलिय- अप्पाउय-सत्थबज्झ - बाला कुलक्खणउकिण्णदेहा दुब्बल-कुसंघयणकुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा किविणा य हीणा हीणसत्ता णिच्चं सोक्खपरिवज्जिया असुह दुक्खभागी णरगाओ इहं सावसेसकम्मा उव्वट्टिया समाणा ।
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शब्दार्थ - जे जो, इह इस, माणुसत्तणं - मनुष्यत्व, आगया प्राप्त हुए, कहिं वि - किसी प्रकार, रगा - नरक से, उव्वट्टिया निकल कर, अधण्णा अधन्य-हीन- निन्दनीय, दीसंतिदिखाई देते हैं, पायसो - प्रायः, विकयविगलरूवा विकृत एवं विकल- अपूर्ण रूप वाले, खुज्जा - कूबड़े, वडभा - टेढ़े शरीर वाले, वामणा वामन - बहुत ही छोटे, बहिरा बहरे, काणा काने, कुंटाटूटे हाथ वाले, पंगुला - लंगड़े, विउला अल्पांग, मूका - गूंगे, मम्मणा - अस्पष्ट बोलने वाले, अंधयगा- अन्धे, एगचक्खू विणिहय- एक आँख से रहित, संचिल्लया - दोनों आँखों से रहित, . वाहिरोगपीलिय - व्याधि एवं रोग से पीड़ित, अप्पाउय - अल्प आयु, सत्थबग्झा - शस्त्र से वध किये हुए, बाला - मूर्ख, कुलक्खणडकिण्णदेहा - कुलक्षणों से मंडित हुए शरीर वाले, दुब्बल - दुर्बल, कुसंघयण - बुरे संहनन वाले, कुप्पपाण- बेडोल, कुसंठिया बुरे संस्थान- आकार वाले, कुरूवा - कुरूप, किविणा कृपण- दीन, हीणा हीन, हीणसत्ता-सत्वहीन, णिच्चं सोक्ख परिवज्जिया - सुख से सदैव वंचित रहने वाले, असुह दुक्खभागी - अशुभानुबन्धी दुःखों से युक्त, णरगाओ नरक से, इहं - यहाँ, सावसेसकम्मा - शेष रहे हुए पाप कर्मों के फलस्वरूप, उव्वट्टिया समाणा-निकल कर ।
भावार्थ - उन हिंसक जीवों में से जो पापी जीव, किसी प्रकार नरक से निकल कर, मनुष्यलोक में उत्पन्न होकर, मानव शरीर प्राप्त करते वे भी प्रायः विकृत शरीर, विकलांगी, कूबड़े, वामन, टेढ़े अंग वाले, बहरे, गूंगे, काने, अन्धे, टूटे हाथ और लंगड़ी टाँग वाले होते हैं । कोई ठीक तरह से बोल भी नहीं सकते। उनकी वाणी अस्पष्ट होती है। कई कुष्टादि व्याधि और ज्वरादि रोग से पीड़ित होते हैं। कई थोड़ी ही आयु में मर जाते हैं। कोई शस्त्र प्रहार से वध किये जाते हैं। कई मनुष्यों का शरीर कुलक्षणों से भरा हुआ है। कई दुर्बल, कुसंहननी, बुरी आकृति वाले, बेडोल, कुरूप, दीन, हीन एवं शक्ति रहित होते हैं । वे अशुभानुबन्धी- पापकर्मों का दुःखरूप फल भोगते हुए सुख से सदा वंचित रहते हैं । वे नरक से निकल कर अपने अवशेष पापकर्मों का फल भोग रहे हैं।
विवेचन - इस सूत्र में उन्हीं मनुष्यों का वर्णन है जो नरक से निकल कर आये हैं या नरक से
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