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पृथ्वी, जल पानी, जलण
पज्जत्तमपज्जत्तं पत्तेयसरीरणाम-साहारणं च पत्तेयसरीर-जीविएसु य तत्थवि कालमसंखेज्जगं भमंति अनंतकालं च अणंतकाए फासिंदियभावसंपउत्ता दुक्खसमुदयं इमं अणि पावंति पुणो पुणो तर्हि तहिं चेव परभवतरुगणगहणे । शब्दार्थ पत्ता प्राप्त, एगिंदियत्तणं - एकिन्द्रियत्व, पुढवि जलने वाली अग्नि, मारुय वायु, वणप्फइ वनस्पति, सुहुमबायरं सूक्ष्म - बादर, पज्जत्तमपज्जसंपर्याप्त-अपर्याप्त, पत्तेयसरीरणाम साहारणं प्रत्येक शरीर नाम और साधारण, पत्तेयसरीरजीविएसु - प्रत्येक शरीर के जीवन में, तत्थवि वहाँ भी, कालमसंखेज्जगं असंख्यकाल तक, भमंति- भ्रमण करते हैं, अनंतकालं - अनंत काल, अनंतकाए अनंतकाय में, फासिंदियभावसंपउत्ता स्पर्शन इन्द्रिय भाव युक्त, दुक्खसमुदयं दुःख समूह को, इयं इस, अणिट्टं पुणो पुणो- बार-बार, तहिं तहिं वहीं, परभवतरुगणगहणे जन्म-मरण करते हुए ।
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अनिष्ट, पार्वति प्राप्त करते हैं, तरुगण - वनस्पतिकाय रूप भव में
भावार्थ - एकेन्द्रियत्व में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति में सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर नाम और साधारण - शरीर नाम को प्राप्त होकर वे वनस्पति में प्रत्येक शरीर के जीवन में (प्रत्येक शरीरीपने) असंख्यात काल तक भ्रमण करते हैं और अनन्तकाय में अनन्तकाल भ्रमण करते हैं। वे जीव बार-बार वनस्पतिकाय में ही जन्म-मरण करते हुए अनिच्छनीय दुःख समूह को प्राप्त करते हैं। इन जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है।
एकेन्द्रिय - जिन जीवों के
मात्र स्पर्शन इन्द्रिय ही हो, जीभ, नासिका, आँख और कान नहीं हों, ऐसे पृथ्वीकायादि पांच स्थावर के जीव ।
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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १
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सूक्ष्म सूक्ष्म नाम कर्ण के उदय से जो पृथिव्यादि स्थावरकाय के जीव अत्यन्त सूक्ष्म हों, जो चर्म चक्षु से दिखाई नहीं दें।
बादर - बादर नामकर्म के उदय से जिन पृथिव्यादि स्थावर जीवों का शरीर स्थूल हो अर्थात् सूक्ष्म शरीरी से विशेष बड़ा हो। ऐसे बादर जीव, स्थावरकाय के अतिरिक्त बेइन्द्रियादि त्रसकाय के भी होते हैं। सूक्ष्म जीव तो केवल स्थावरकाय में ही होते हैं, त्रस में नहीं। किन्तु त्रस जीवों में और बादर स्थावरकाय जीवों में भी इतने बारीक जीव होते हैं कि जिन्हें हम देख नहीं सकते। सम्मूच्छिम मनुष्य बारीक-बहुत छोटे होते हैं, वे हमें दिखाई नहीं देते, फिर भी वे बादर हैं।
पर्याप्तक - पर्याप्त नामकर्म के उदय से जीव का पर्याप्तक होना । कुल पर्याप्तियाँ छह हैं - १. आहार पर्याप्ति २. शरीर पर्याप्ति ३. इन्द्रिय पर्याप्ति ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ५. भाषा पर्याप्ति और ६. मनः पर्याप्ति । इनमें से एकेन्द्रिय जीवों के प्रथम की चार पर्याप्तियाँ होती हैं और बेइन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के मन को छोड़कर पांच तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के सभी छह ।
अपर्याप्तक- जब तक अपनी जाति के योग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण रूप से नहीं बांध ली जातीं, तब
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