________________
४८
प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १ **## ############### ####################### #####
जन्म का दुःख भी पशुओं को बहुत होता है। वन में रहने वाली हिरनी, बाघिन सियालिनी, लोमड़ी आदि गर्भिणी होती है, उनका प्रसवकाल होता है, तो कौन उनका जच्चाकर्म करता है? कौन उनकी सेवा-शुश्रूषा एवं परिचर्या करता है? रोग होने पर कौन औषधी देता है? उनके दुःखों का प्रतिकार करने वाला कौन है? कोई नहीं। यदि साथी मृग, बाघ, चीता आदि हो, तो वे भी क्या कर सकते हैं ? खड़े-खड़े देखने व चिन्ता करने के अतिरिक्त उनके पास उस दुःखी प्राणी के दुःख का प्रतिकार करने का कोई उपाय नहीं होता।
तिर्यंचों के सामने भय का वातावरण बना ही रहता है। सिंह की गर्जना या गन्ध मात्र से वन के सैकड़ों प्राणी भयभीत रहते हैं। उनका वह भय बना ही रहता है। चलते-फिरते खाते-पीते और सोते समय भी भय लगा रहता है-कहीं आस-पास दुबक कर बैठा हुआ चीता लपक कर हमें दबोच नहीं ले। कहीं हमारे बच्चे को नहीं खा जाये। सर्प को नेवले और मयूर आदि का, छोटे-मोटे, कीड़ोंमकोड़ों को मुर्गे-तीतर आदि पक्षियों का और पशुमात्र को निर्दय शिकारी मनुष्यों और पारधि-बहेलिया आदि हिंसक धन्धा करने वाले मनुष्यों का भय सदैव बना रहता है। अब तो बन्दरों, मेढ़कों, :सूअरों, मुर्गों, अंडों और मत्स्यादि जलचरों को सरकार का भय भी बहुत बड़ा लग गया है। कुंथु से लगाकर हाथी और सिंह तक को मनुष्य का भय है। बिचारे जीवों को खाते, पीते, सोते और किलोल करते हुए को गोली मारकर ढेर कर देते हैं। आकाश में उड़ते पक्षियों को मारकर गिरा देते हैं। बड़े-बड़े कत्लखाने खोलकर काटे जाते हैं। तिर्यंचों के लिए तिर्यंच और मनुष्य दोनों का भय है। वन में भी भय
और बस्ती में भी भय। पद-पद पर भय बना हुआ है। उन बिचारों के लिए सुख की नींद कहाँ? - वध के दुःख के साथ बन्धन का दुःख भी बहुत है। गाय, बैल, घोड़ा, गधा, खच्चर, हाथी आदि पशुओं और तोता, मैना, मुर्गा, बत्तख, तीतर आदि पक्षियों के लिए बन्धन का दुःख लगा ही रहता है। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए उन्हें जीवनभर बन्धन में रखकर दुःख देता है। कोई सवारी के लिए बन्धन में डालता है, तो कोई दूध, कृषि और भार ढोने के लिए और कोई मारकर खाने के लिए बन्धन में जकड़ते हैं। अब तो औषधि-निर्माण तथा शरीर विज्ञान का अध्ययन करने के लिए भी पशुओं को बन्दी बनाकर देश निकाला देते हैं। वहां उन्हें कठोरतापूर्वक बन्धन में जकड़ कर अंग-प्रत्यंग पर छुरी चलाई जाती है। खून खींचा जाता है, हाथ-पांव काटे जाते हैं और वे बन्धन में जकड़े हुए घोर दुःख भोगते रहते हैं।
मनुष्यों द्वारा चिह्नित किये जाते हैं। फौजी घोड़ों के फिछले पांव पर गरम लोहे से दागते हुए दोतीन बड़े अक्षर बनाकर अधिकृत राज्य या वर्ग का चिह्न बनाया जाता है। पशुओं की पहचान के लिए भी चिह्न बनाये जाते हैं। धर्म-सांड के परिचय के लिए चांद-सूर्य का अंकन किया जाता है। गाय और भैंस के कान सुन्दर बनाने के लिए चीर दिये जाते हैं।
बलवान पशु, निर्बल अशक्त और रोगी पशु को धक्का देकर खड्डे में गिरा देता है, जहाँ से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org