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________________ ४२ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०१ ************************************************************* की महावेदना सर्वथा संभव है। हम यहां भी देखते हैं कि इस प्रकार की घास यहाँ भी है जो हाथ-पाँव में चूभने से मांस में गड़कर रक्त निकल आता है। ऐसी तीखे कंकर वाली पृथ्वी है कि जिस पर कुछ कदम चलना भी कठिन हो जाता है। वैज्ञानिक लोग, कुत्तों, बन्दरों और मेढकों को उनके अंगों को काट-काट कर कितना दुःख देते हैं? वे अपने अनुसन्धान के लिए करते हैं, तो नरकपाल अपने मनोरंजन के लिए करते हैं। कसाईखानों में पशुओं को काटने-मारने चीरने का बीभत्स दृश्य तो मनुष्य-लोक में भी प्रत्यक्ष है। • समाचार-पत्रों में पढ़ा था कि भारत में एक ऐसा भी मनुष्य था जिसे सोये हुए मनुष्य की कनपटी पर हथोड़े की चोट करके मारने में मजा आता था। अन्त में वह पकड़ा गया और मुकद्दमा चलकर दण्ड पाया। विदेशों में ऐसे भी मनुष्य हुए जिनकी रुचि राक्षसी-नृशंस थीं। उसी प्रकार की रुचि नरकपालों . की भी होती है। वे एकान्त मिथ्यादृष्टि एवं अधार्मिक ही होते हैं। वास्तव में जिन जीवों के ऊपर पाप का भार अत्यधिक हो जाता है, उनको भोगने का स्थान नरक . ही है और वैसी दारुण वेदना से ही उनके पाप का भार हल्का होता है। मनुष्य के द्वारा अथवा मनुष्य , लोक में उतना दण्ड मिल ही नहीं सकता। ' नारकों के शस्त्र किं ते मुग्गर-मुसुंढि-करकय-सत्ति-हल-गय-मूसल-चक्क-कोंत-तोमर-सूललड्डु भिडिपा (मा) लसद्धल-पट्टिस-चम्मेढ़-दुहण-मुट्ठिय-असि-खेडग-खग्ग-चावणाराय-कणग-कप्पिणि-वासि-पस्सु-टंक-तिक्खणिम्मल-अण्णेहिं य एवमाइएहिं .. असुभेहिं वेउविएहिं पहरणसएहिं अणुबद्धतिव्ववेरा परोप्परवेयणं उदीरेंति अभिहणंता। शब्दार्थ - किं ते - वे शस्त्र कौन से हैं? मुग्गर - मुद्गर, मुसुंढि - शस्त्र विशेष-बन्दूक? करकयकरवंत, सत्ति - शक्ति, हल - प्रसिद्ध है, गय - गदा, मूसल - प्रसिद्ध, चक्क - चक्र, कोंत - कुन्त-भाला, तोमर - एक प्रकार का बाण, सूल - शूल, लड्ड- लाठी, भिडीपाल- शस्त्र विशेष, सद्धलभाला, पट्टिस - एक प्रकार का शस्त्र, चम्मेट्ठ- चर्म वेष्ठित पाषाणमय शस्त्र-गोफण, दुहण - एक प्रकार का मुद्गर-घन?, मुट्ठिय - मुष्टिक-एरण जैसा, असि - तलवार, खेडग - पटिया, खग्ग - खड्ग, चाव - धनुष, णाराय - बाण, कणग - एक प्रकार का बाण, कप्पिणिं - कैंची, वासि - वसूला, परसुकुठार, टंक - छेनी, तिक्खणिम्मल - तीखे और निर्मल, अण्णेहिं - अन्य भी, एवमाइएहिं - इसी प्रकार के, वेउव्विएहिं - वैक्रिय द्वारा निर्मित, असुभेहिं - अशुभ, पहरणसएहिं - सैकड़ों शस्त्रों से, अणुबद्धतिव्ववेरा - तीव्र वैर से बंधे हुए नारक, अभिहणंता - हनन करते हुए, परोप्परवेयणं - परस्पर-एक दूसरे को वेदना, उदीरेंति - उत्पन्न करते हैं। भावार्थ - 'नारक जीव कैसे शस्त्रों से आघात करते हैं'? शिष्य के इस प्रश्न के उत्तर में गुरुदेव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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