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________________ ३६ A... प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०१ ***** ********************************** ********* २. अम्बरीष - जो छुरी आदि के द्वारा नारकी जीवों के छोटे-छोटे टुकड़े करके भाड़ में पकने योग्य बनाते हैं। . ३. श्याम - जो रस्सी या लात-घूसे आदि से नारकी जीवों को पीटते हैं और भयंकर स्थानों में पटक देते हैं। ये काले रंग के होते हैं, और 'श्याम' कहलाते हैं। ४. शबल - जो नारकी जीवों के शरीर की आंतें, नसें और कलेजे आदि को बाहर खींच लेते हैं तथा शबल अर्थात् चितकबरे रंग वाले होते हैं, इसलिए 'शबल' कहलाते हैं। ___५. रुद्र (रौद्र) - जो भाला-बरछी आदि शस्त्रों में नारकी जीवों को पिरो देते हैं और जो रौद्र (भयंकर) होते हैं। ६. उपरुद्र (उपरौद्र) - जो नैरयिकों के अंगोपांगों को फाड़ डालते हैं और जो महारौद्र (अत्यन्त भयंकर) होते हैं। . ७. काल - जो नैरयिकों को कड़ाही में पकाते हैं और काले रंग के होते हैं। ८. महाकाल - जो उनके चिकने मांस के टुकड़े-टुकड़े करते हैं, उन्हें खिलाते हैं और बहुत काले होते हैं। उन्हें 'महाकाल' कहते हैं। ९. असिपत्र - जो वैक्रिय-शक्ति द्वारा असि अर्थात् तलवार के आकार वाले पत्तों से युक्त वन की विक्रिया करके उसमें बैठे हुए नारकी जीवों के ऊपर वे पत्ते गिराकर तिल सरीखे छोटे-छोटे टुकड़े कर डालते हैं, उन्हें 'असिपत्र' कहते हैं। १०. धनुष - जो धनुष के द्वारा अर्द्ध चन्द्रादि बाण फैंककर नारकी जीवों के कान आदि को छेद देते हैं, भेद देते हैं और भी कई प्रकार की पीड़ा पहुंचाते हैं। ११. कुम्भ- जो नारकी जीवों को कुम्भियों में पकाते हैं। . १२. बालू - जो वैक्रिय के द्वारा बनाई हुई, कदम्ब-पुष्प के आकार वाली अथवा वज्र के आकार वाली बालू रेत में नारकी जीवों को चने की तरह भुनते हैं। १३. वैतरणी - जो असुर मांस, रुधिर, राध, ताम्बा, सीसा आदि गरम पदार्थों से उबलती हुई नदी में नारकी जीवों को फैंककर उन्हें तैरने के लिए बाध्य करते हैं, उन्हें 'वैतरणी' कहते हैं। १४. खरस्वर - जो वज्र कण्टकों से व्याप्त शाल्मली वृक्ष और नारकी जीवों को चढ़ाकर, कठोर स्वर करते हुए अथवा करुण रुदन करते हुए नारकी जीवों को खींचते हैं। उन्हें 'खरस्वर' कहते हैं। १५. महाघोष - जो डर से भागते हुए नारकी जीवों को पशुओं की तरह बाड़े में बन्द कर देते हैं। तथा जोर से चिल्लाते हुए वहीं उन्हें रोके रखते हैं, उन्हें 'महाघोष' कहते हैं (भगवती ३-७)। उपरोक्त यमकायिक देवों से त्रास फाये हुए दुःखी नारक जीव आक्रन्द करते हुए चिल्लाते हैं। __नारक जीवों की करुण पुकार किं ते? अविभाय सामि भाय बप्प ताय जियवं मुय मे मरामि दुब्बलो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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