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हिंसक जातियाँ
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हिंसक जातियाँ इमे य बहवे मिलक्खुजाई, के ते? सक-जवण-सबर-बब्बर-काय-मुरुडोदभडग-तित्तिय-पक्कणिय-कुलक्ख-गोड-सीहल-पारस-कोचंध-दविल-बिल्ललपुलिंद-अरोस-डोंब-पोक्कण-गंध-हारग-बहलीय-जल्ल-रोम-मास-बउस-मलयाचुंचया य चूलिया कोंकणगामेत्त पण्हव-मालव-महुर-आभासिय-अणक्ख-चीणलासिय-खस-खासिया-नेटर --मरहट्ठ-मुट्ठिय-आरब-डोबिलग-कुहण-केकय-हूणरोमग-रुरु-मरुया-चिलायविसय-वासी य पावमइणो।
शब्दार्थ - इमे - ये, बहवे - बहुत-सी, मिलक्खुजाई - म्लेच्छ जातियाँ हैं, ते के - वे कौनसी जातियाँ हैं ?, सक - शक देश के, जवण - यवन-तुर्क, इन देशों में उत्पन्न मनुष्य जातियाँ, सबर - भील, बब्बर - बर्बर, काय - काय, मुरुडोदभडग - मुरुंड उद भडक, तित्तिय - तित्तिक, पक्कणियपक्कणिक, कुलक्ख - कुलाक्ष, गोड - गौड, सीहल - सिंहल, पारस - पारस, कोचंध - क्रौंच और आन्ध्र, दविल - द्रविड़, बिल्लल - विल्वल, पुलिंद - पुलिंद, अरोस - अरोष, डोंब - डौंब, पोक्कणपोकण, गंधहारक -- गंधहारक-गान्धार, बहलीय - बहलीक, जल्ल - जल्ल, रोम - रोम, मास - मास, बउस - बकुश, मलया - मलय, चुंचुया - चुंचक, चूलिया - चूलिक, कोंकणगामेत्त - कोंकणक मेद, पण्हव - पण्हव, मालव - मालव, महुर - महुर, आभासिय - आभाषिक, अणक्क - अण्णक, चीण - चीन, लासिय - लुहासिक, खस - खस, खासिया - खासिक, णेहुर - नेहर, मरहट्ठमहाराष्ट्र, मुट्ठिय - मौष्टिक, आरब - आरब, डोबिलग - डोबिलक, कुहण - कुहण, केकयं - कैकय, हूण - हूण, रोमग - रोमक, रुरु - रुरु, मरुया - मरुक, चिलायविसयवासी - चिलात देशवासी, पावमइणो - पापमति।
भावार्थ - वे बहुत-सी म्लेच्छ जातियों के लोग हैं। वे कौन-सी जातियाँ हैं ? - शक, यवन, शबर, बब्बर, काय, मुरुंड, उद, भडक, तित्तिक, पक्कणिक. कलाक्ष. गौड, सिंहल. पारस. क्रौंच. आन्ध्र, द्रविड, विल्वल, पुलिंद, आरोष, डौंब, पोकण, गान्धार, बेहलीक, जल्ल, रोम, मास, बकुश, मलय, चुंचुक, चूलिक, कोंकण, मेद, पण्हव, मालव, महुर, आभाषिक, अणक्क, चीन, लुहासिक, खस, खासिक, नेहर, महाराष्ट्र, मोष्टिक, आरब, डोबलिक, कुहण, कैकय, हूण, रोमक, रुरु, मरुक, चिलात देश के निवासी पापमति वाले हिंसक लोगों की जातियाँ हैं।
विवेचन - मनुष्यों के हिंसक और मांस-भक्षी जातियाँ बहुत हैं। भारत के अतिरिक्त सभी देशवासी मांस-भक्षक हैं। भारत में ही जैन और कुछ वैष्णव मतानुयायी जातियाँ ऐसी हैं कि जो न तो
० पूज्य श्री हस्तीमल जी म. सम्पादित तथा बीकानेर वाली प्रति में कोंकणगामेत्त' पाठ है और पूज्य श्री घासीलालजी म. तथा श्रीमद्ज्ञानविमल सूरि की टीकावली प्रति में-'कोंकणग-कणय-सेय-मेता'-पाठ है। यह पाठ भेद है।
* 'णेहुर'-पाठ भेद। .
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