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________________ १८ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०१ *********************************** * ******************* हरणा-वरणुवक्खराणकए अण्णेहिं य एवमाइएहिं बहुहिं कारणसएहिं हिंसंति ते तरुगणे भणियाभणिए य एवमाई। शब्दार्थ - अगार - घर, परियार - खडगादि का म्यान, भक्ख-भोयण - खाने के लिए भोजन, सयण - सोने के लिए पलंगादि, आसण - बैठने के लिए आसन, फलक - पटिया, मूसल - धान्य कूटने का मूसल, उखल - ओखली, तत - वीणा आदि, वितत - ढोल-नगाड़ा आदि, आतोज्ज - वादिन्त्र, वहण - नौका आदि, वाहण - गाड़ी-रथ आदि, मंडव - मण्डप, विविहभवण - अनेक प्रकार के भवन, तोरण - तोरण, विडंग - कबूतरों के बैठने व रहने के लिए बनाए गए-कपोतपाली (छाजे), देवकुलदेवालय, जालय - झरोखा; अद्धचंद - अर्द्ध-चन्द्राकार खिड़की अथवा तदाकार सोपान, णिज्जूहग - द्वार शाखा के ऊपर घोड़े के मुंह के आकार के निकले हुए लकड़ी केसाधन, चंदसालिय - चन्द्रशालाघर के ऊपर की शाला-अट्टालिका, वेतिय - वेदिका, णिस्सेणि - नि:स्सरणी-सीढ़ी, दोणि- छोटी नौका, चंगेरी - बड़ी नौका अथवा पुष्प भरने का डलिया, खील - खूटी, मेढक - स्तंभ, सभा - सभा, पवाप्याऊ, आवसह - आश्रम या मठ, गंध - सुगन्ध, मल्ला - माला, अणुलेवणं - विलेपन, अंबर - वस्त्र, जुय - जुआ, णंगल - हल, मइय - खेती के काम में आने वाली लकड़ी का 'बक्खर', कुलिय - बीज बोने की नलिका, संदण - एक प्रकार का रथ, सीयारह - शिविका-पालकी, रथ, सगडगाड़ी, जाण - यान, जोग्ग - छोटी गाड़ी, अट्टालग - अट्टालिका, चरिय - नगर और प्रकोट के बीच का आठ हाथ चौड़ा मार्ग, दार - द्वार, गोउर - नगर का बड़ा द्वार, फलिह - परिघा-अर्गला, जंत - यंत्र-अरहट्टादि, सूलिय - शूली, लउड - लाठी, मुसंढि - शस्त्र विशेष-बन्दक, सयग्घि- शतनि-तोप. बहुपहरणावरणुवक्खराणए-बहुत प्रकार के शस्त्र ढक्कन तथा नाना प्रकार के उपकरण बनाने के लिए, य - और, एवमाइएहिं - इसी प्रकार के, अण्णेहिं - दूसरे, भणिया अभणिए - ऊपर कहे गए और नहीं कहे गए ऐसे, बहुहिं - बहुत से, कारण-सएहिं. - सैकड़ों कारणों से, ते - वे अज्ञानीजन, तरुगणे - वृक्षों के समुदाय-वनस्पतिकाय की, हिंसंति - हिंसा करते हैं। .. भावार्थ - वनस्पति का आरम्भ घर बनाने के लिए, तलवार आदि शस्त्रों के कोश (म्यान) के लिए, खाने-पीने, भोजन बनाने, शय्या, आसन, पाट, मूसल, ओखली, वीणा, ढोल-नगारे, वादिन्त्र, जलयान, स्थलयान-रथादि, मंडप, भवन, तोरण, कबूतरादि के बैठने के लिए स्थान, देवालय, झरोखे, चन्द्राकार सोपानादि, द्वारोपरि घोड़मुखे, चन्द्रशाला, वेदिका, नि:सरणी, नौका, बड़ी नोका (जहाज) फूलों की छाब, खूटे, थंभे, सभा, प्याऊ, आश्रम, सुगन्धित साधन, माला विलेपन वस्त्र बैलों को जोतने का जुआ, हल, बक्खर, नलिका, शिविका, गाड़ी, यान, छोटी गाड़ी, अट्टालिका, चरिका, द्वार, नगरद्वार, अर्गला, यंत्र, शूली, लाठी, बन्दूक, तोप अनेक प्रकार के उपकरण बनाने और ऐसे सैकड़ों कामों के लिए जो यहाँ बताए नहीं गये हैं, अज्ञानीजन वनस्पतिकाय की हिंसा करते हैं। विवेचन - वनस्पतिकाय का मानव जीवन से बहुत बडा सम्बन्ध है। खान-पान, वस्त्र-पात्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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