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________________ * * ** * ** * * * * * कल्पनीय-आचरणीय 303 ******************************************** मट्टिउवलित्तं - मृतिकोपलिप्त-मिट्टी आदि से लीपकर बन्द किये हुए बरतन का वह लेप तोड़कर दिया हुआ। अच्छेज्जं - आच्छेद्य-नौकर-चाकर आदि से छीनकर दिया हुआ। तिहिसु - तिथि-मदन-त्रयोदशी आदि तिथियों में। जण्णेसु - नागपूजा आदि यज्ञों में। उस्सवेस- इन्द्र महोत्सवों आदि उत्सवों के समय। जं वि- जो आहार। अंतो - घर के अन्दर / बहिं - बाहर तैयार करके। . समणट्ठयाए - साधु के लिए। ठवियं - रखा जाता है। हिंसासावजसंपउत्तं - जो वस्तु हिंसा रूपी सावध कार्य से युक्त है। तं वि - ऐसी उपरोक्त वस्तु को। परिघेत्तु - ग्रहण करना। ण कप्पइ - साधु को नहीं कल्पता। भावार्थ - जो आहारादि साधु के लिए बनाया हो, साधु के लिए स्थापित करके रखा हो, बिखरे हुए चूरे को पिण्डभूत या लडु जैसा बनाया हो, आकृति आदि पलट कर रखा हो, जिसमें से रस की बूंद या कण गिर रहे हों, अन्धरे में रही हुई वस्तु को दीपक आदि से प्रकाशित किया हो, साधु के लिए उधार ली हो, साधु और गृहस्थ के लिए सम्मिलित बनाया हो, खरीदा हो, साधु की सुविधा के लिए मेहमानों को पहले या पीछे भोजन कराने की व्यवस्था हो, दान देने के लिए बनाई हुई वस्तु, पुण्यार्थ देने की वस्तु, शाक्यादि भिक्षु अथवा कंगाल या भिखारियों के लिए बनाया हुआ, देने के बाद हाथ पात्र आदि धोने रूप दोष लगने वाला हो, पहले ही हाथ आदि धोकर दे, सदैव एक घर से लेना, सचित्त जल आदि से स्पृष्ट, प्रमाण से अधिक, दाता की प्रशंसा करके प्राप्त करना, दाता की इच्छा के बिना अपने-आप ग्रहण करना, साधु के लिए सम्मुख लाया हुआ, मिट्टी आदि का लेप तोड़ कर दिया जाने वाला, किसी से छीन कर लिया हुआ, महत्त्वपूर्ण मानी गई तिथियों में, यज्ञ में और उत्सव में, जो आहारादि घर के भीतर या बाहर तैयार करके साधु के लिए रखा जाये और जो हिंसादि सावद्य कार्य से युक्त हो, उसे ग्रहण करना साधु के लिए निषिद्ध है। कल्पनीय - आचरणीय * अह केरिसयं पुणाइ कप्पइ? जं तं एक्कारस-पिंडवायसुद्धं किणण-हणणपयण-कय-कारियाणुमोयण-णवकोडीहिं सुपरिसुद्धं दसहिं य दोसेहिं विप्पमुक्कं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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