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________________ 292 .......... प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०२ अ०५ ************************************************************* 6. ब्रह्मचर्य 7. सचित्त त्यांग 8. आरम्भ त्याग 9. प्रेष्य त्याग 10. उद्दिष्ट त्याग और 11. श्रमण भूत प्रतिमा। विस्तृत स्वरूप दशाश्रुत स्कन्ध दशा 6 या मोक्षमार्ग में देखना चाहिए। बारह भिक्षु प्रतिमा का स्वरूप दशाश्रुत स्कन्ध अ०७ या मोक्षमार्ग में देखें। . . क्रिया स्थान तेरह - 1. अर्थदण्ड 2. अनर्थदण्ड 3. हिंसा 4. अकस्मात 5. दृष्टिविपर्यास 6. मृषावाद 7. अदत्तादान 8. आध्यात्म 9. मानदण्ड 10. मित्र दण्ड 11. माया 12. लोभ और 13. ईर्यापथिक। 'भूतग्राम चौदह - 1. सूक्ष्म एकेन्द्रिय 2. बादर एकेन्द्रिय 3. बेइन्द्रिय 4. तेइन्द्रिय 5. चतुरेन्द्रिय 6. असंज्ञी पंचेन्द्रिय और 7. संज्ञी पंचेन्द्रिय। इन सात के अपर्याप्त और पर्याप्त-यों कुल चौदहं भेद हुए। - परमाधर्मी देव पन्द्रह - नैरयिक जीवों को क्रूरतापूर्वक दण्ड देने वाले भवनपति जाति के महान् अधार्मिक देव। इनके भेद हैं - 1. आम्र 2. आम्र रस 3. शाम 4. सबल 5. रुद्र 6. वैरुद्र 7. काल 8. महाकाल 9. असिपत्र 10. धनुष 11. कुंभ 12. बालुक 13. वैतरणी 14. खरस्वर और 15. महाघोषं। ___ असंयम के सतरह भेद - 1. पृथ्वीकाय असंयम 2. अप्काय 3. तेजस्काय 4. वायुकायः५. वनस्पतिकाय 6. बेइन्द्रिय 7. तेइन्द्रिय 8. चौरेन्द्रिय 9. पंचेन्द्रिय, इनमें असंयमी होना 10. अजीवकाय असंयम 11. प्रेक्षा 12. उपेक्षा 13. परिस्थापनिका 14. अप्रमार्जना 15. मन असंयम 16. वचन, असंयम और 17. काय असंयम। इनके विपरीत संयम के भी 17 भेद हैं। अब्रह्मचर्य के अठारह भेद - औदारिक शरीर (मनुष्य तिर्यच) से अब्रह्म का सेवन 1. स्वयं करे 2. अन्य से करावे 3. अनुमोदन करे 1. मन 2. वचन और 3. काया से। इस प्रकार तीन करण का तीन योग से गुणन करने से औदारिक सम्बन्धी 9 भेद हुए, इसी प्रकार 9 भेद वैक्रिय शरीर सम्बन्धी है, कुल 18 भेद हुए। इनके विपरीत ब्रह्मचर्य के भी 18 भेद हैं। असमाधि के बीस स्थान - 1. द्रुत-द्रुत (शीघ्रातिशीघ्र) चलना 2. अप्रमार्जित चलना 3. दुष्प्रमार्जित चलना 4. अतिरिक्त शय्यासन 5. रानिक परिभाषण 6. स्थविरोपघात 7. भूतोपघात 8. ज्वलनशीलता 9. क्रोध करना 10. पृष्टमांसिकता 11. बार-बार निश्चयकारी भाषा बोलना 12. कलह उत्पन्न करना 13. शांत विवाद को उभारना 14. अकाल में स्वाध्याय करना 15. रजलिप्त हाथ-पांव से आसन-शयन करना 16. रात्रि में जोर से बोना 17. गण या गच्छ में भेद (फूट) डालना 18. क्लेशोत्पादक वचन बोलना 19. दिनभर खाना और 20. अनैषणीय लेना। (दशाश्रुतस्कन्ध दशा 1) एगवीसाय-सबला य, बावीसं परिसहा य, तेवीसए सूयगडज्झयणा, चउवीसविहा देवा, पण्णवीसाए भावणा, छव्वीसा दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकाला, सत्तावीसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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