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________________ 282 ******** प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ० 4 ************************************************* आठ-आठ भेद, इस प्रकार चौसठ गुण बतलाये। यथा - 'चतुःषष्टिश्च महिला-गुणा: आलिंगना दीनामष्टानां कर्मणां प्रत्येकमष्टाष्टभेदत्वेन चतुष्पष्टिर्जायते।' इसके बाद लिखा है"गीतनृत्योचित्यादयोऽपि नामतः चतुःषष्टिभेदा अपि संति।" ये गीत-नृत्यादि चौसठ कलाएँ हैं। जिनका उल्लेख पांचवें आस्रवद्वार में किया गया है। पूज्य श्री हस्तीमल जी म. सा. ने अपने प्रश्नव्याकरण के परिशिष्ट में इन चौसठ कलों को ही 'महिलागुण' नाम से दिया है। स्त्रियों की देशकथा - जैसे-कश्मीर, लाट आदि देश की स्त्रियाँ बहुत सुन्दर, मृदुभाषिणी, रतिनिपुण और उन्नत उरोजवाली होती हैं। यथा - "लाटदेशीयाः कोमलवचना रतिनिपुणाः सुस्तन्यो भवति।" . जाति कथा - उन ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति की स्त्रियों को धिक्कार है कि जो विधवा होने पर जीवनभर मृतक के समान निरानंद रहती हैं। यदि वे अपनी जाति की रीति के विपरीत थोड़ा भी कुछ करती हैं, तो निन्दित एवं बहिष्कृत हो जाती हैं। इसके विपरीत शूद्र जाति की स्त्रियाँ धन्य है कि जो लाख पति वाली होकर भी निन्दित नहीं होती। उन्हें न तो वैधव्य-दुःख होता है और न एक पति पर ही आश्रित रहना पड़ता है। यथा - 'धिग् ब्राह्मणी विधवा या, जीवन्ती मृता इव धन्ये मन्ये जने शूद्रा पतिलक्ष्येऽप्य-निन्दिता।' कुलकथा - चौलुक्यादि क्षत्रिय कुल की स्त्रियाँ बड़ी साहसी होती हैं। ये पति के मरने पर प्रेमविहीन हो, जीवित ही अपने पति के साथ अग्नि में जलकर मर जाती हैं। यथा - "अहो चौलुक्य-पुत्रीणां साहसो जगतोऽधिकं। पत्युर्मुत्यौ विशंत्यग्नौ या प्रेमरहिता अपि।" रूपकथा - अमुक स्त्री चन्द्रमुखी है। अमुक की आँखें हिरनी के समान आकर्षक हैं। गौरवर्णी होकर भी लम्बोतरे मुंह वाली युवती से तो लावण्यवती श्यामा अति मोहक होती है, आदि। कहा है कि - 'चन्द्रवक्त्रा सरोजाक्षी, सद्गी:पीनघनस्तनी। किं लाटीनामतः साऽस्य, देवानामपि दुर्लभा।' अर्थात् लाट-देशीय महिलाएं चन्द्रवदनी, कमलनयनी, मधुरभाषिणी और पुष्ट एवं उन्नत स्तन वाली होती हैं। ऐसी स्त्रियाँ किसे नहीं भाएंगी? वे तो देवों के लिए भी दुर्लभ होती हैं। नाम-कथा - अमुक युवती का नाम-'वसंतसेना' वास्तव में गुण-निष्पन्न है। उसकी बहिन 'प्रियदर्शना' भी नयनाभिराम है। किन्तु अमुक का 'मोहिनी' नाम तो निरर्थक ही है। जिसे देखते ही घृणा होती है। नेपथ्य-कथा - स्त्रियों की वेश-भूषा का वर्णन करना और कहना कि - अमुक प्रकार का वेश अच्छा है, शोभनीय है और अमुक पहनावा खराब है, भद्दा है। चूंघट निकालना और पर्दे में रहना बुरा है। खुले मुंह और चुस्त वस्त्र अच्छे हैं आदि। टीकाकार ने इस स्थान पर-"धिग्नारीरौदीच्या बहुवसनाच्छादितांगलतिकत्वात् यद्यौवनं न यूनां चक्षुर्मोदाय नो भवति"- उत्तर दिशा की स्त्रियों को धिक्कार है जो अनेक वस्त्रों में आच्छादित रहती हैं। इस प्रकार पूर्णरूप से ढकी हुई रहने से उनका यौवन और सौंदर्य युवकों की आंखों को आनन्दित नहीं कर सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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