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________________ द्वितीय भावना-स्त्री-कथा वर्जन 281 **************************************************************** करने वाले को, ण कहियव्वा - न कहनी चाहिए, ण सुणियव्या - न सुननी चाहिए, ण चिंतियव्वा - न चिंतन करनी चाहिए, एवं - इस प्रकार, इत्थी कहविरइसमिइजोगेणं - स्त्री कथा से विरति रूप समिति के योग से, भाविओ - भावित, भवइ - होती है, अंतरप्पा - अन्तरात्मा, आरयमणविरयगामधम्मे - मैथुन से निवृत्त और इन्द्रिय लोलुपता से रहित, जिइंदिए - जितेन्द्रिय, बंभचेर गुत्ते - ब्रह्मचर्य गुप्त। भावार्थ - दूसरी भावना है-स्त्रियों के मध्य बैठकर विविध प्रकार की कथा-वार्ता नहीं कहना। स्त्रियों के विव्वोक (स्त्रियों की कामुक-चेष्टा) विलास (स्मित-कटाक्षादि) हास्य और शृंगार युक्त लौकिक कथा-कहानियाँ नहीं कहें। ऐसी कथाएं मोह उत्पन्न करती हैं। विवाह और द्विरागमन तथा वरवधू सम्बन्धी रसीली बातें और स्त्रियों के सौभाग्य-दुर्भाग्य के वर्णन भी नहीं करना चाहिए। महिलाओं के काम-शास्त्र वर्णित चौसठ गुण, उनके वर्ण, देश, जाति, कुल, रूप, नाम, नेपथ्य (वेश-: भूषा) और परिजन सम्बन्धी वर्णन भी नहीं करना चाहिए। स्त्रियों के शृंगार रस, करुणाजन्य विलाप आदि तथा इसी प्रकार की अन्य मोहोत्पादक कथा भी नहीं कहनी चाहिए। ऐसी कथाएँ तप, संयम और ब्रह्मचर्य की घात और उपघात करने वाली होती हैं। ऐसी कथाएँ ब्रह्मचर्य पालक को नहीं कहनी चाहिए और न किसी से सुननी ही चाहिए तथा मन में इस प्रकार का चिन्तन भी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार स्त्री सम्बन्धी कथा से निवृत्त रहने रूप समिति का पालन करने से अन्तरात्मा पवित्र रहती है। इस प्रकार निर्दोषतापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालक साधु, इन्द्रियों के विषयों से विरत रहकर जितेन्द्रिय तथा ब्रह्मचर्य-गुप्ति का धारक होता है। विवेचन - पुरुष के लिए 'स्त्रयों का संसर्ग ब्रह्मचर्य के लिए घातक है-यह जान कर यदि कोई कहे कि सभा में धर्मोपदेश देने और धर्म-कथा कहने में क्या दोष है ? इस विचारणा को भी अवकाश : नहीं देने के लिए सूत्रकार कहते हैं कि केवल स्त्रियों की सभा में किसी भी प्रकार की कथा-वार्ता नहीं करनी चाहिए। धर्म-कथा के लिए भी स्त्रियों का संसर्ग नहीं होना चाहिए। पुरुषयुक्त स्त्रियों की सभा में धर्म-कथा हो सकती है, केवल स्त्रियों की सभा में नहीं। स्त्रियों की सभा में तो साधु का उनसे साक्षात्कार होता है, इसलिए उन्हें देखने-निरखने और कदाचित् बोलने का प्रसंग आ सकता है, किन्तु स्त्रियों से दूर-परोक्ष रह कर भी स्त्रियों की कामचेष्टा, हास्य विलास, रूप-सौंदर्यादि का वर्णन और चिंतन भी नहीं करना चाहिए। वर्णन और चिंतन से अनुराग उत्पन्न होता है और यह अनुराग ही ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक बन सकता है। जब स्त्रियों से दूर रहकर, स्त्रीकथा एवं चिन्तन निषिद्ध है तब साक्षात् संसर्ग की तो बात ही कहाँ रही? सूत्रकार ने स्त्री सम्बन्धी उसी वर्णन और चिंतन का निषेध किया है-जो रागवर्द्धक-मोह को जगाने वाला हो। वैराग्य-वर्द्धक, मोह-शामक वर्णन-चिंतन का निषेध नहीं है, क्योंकि यह ब्रह्मचर्य-रक्षक है। . महिलाओं के 64 गुण - टीकाकार ने आलिंगनादि आठ गुण और उन आठ में प्रत्येक के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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