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________________ सत्य-वचन नामक द्वितीय संवर द्वार / सत्य की महिमा जंबू! बिइयं य सच्चवयणं सुद्धं सुचियं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदि8 सुपइट्ठियं सुपइट्ठियजसं सुसंजमिय-वयण-बुइयं सुरवर-णरवसभ-पवरबलवगसुविहियजणबहुमयं, परमसाहुधम्मचरणं, तवणियमपरिग्गहियं सुगइपहदेसगं य लोगुत्तमं वयमिणं। विज्जाहरगगणगमणविज्जाणसाहकं सग्गमग्ग-सिद्धि-पहदेसगं अवितहं तं सच्चं, उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं अत्थओ विसुद्धं उज्जोयकरं पभासगं भवइ सव्वभावाण जीवलाए, अविसंवाइ जहत्थमहुरं। __ शब्दार्थ - जंबू - हे जम्बू, बिइयं - द्वितीय, सच्चवयणं - सत्य वचन, सुद्धं - शुद्ध, सुचियं - पवित्र, सिवं - कल्याणकारी, सुजायं - शुभ अर्थ का कथन करने वाला, सुभासियं - सुभाषित, सुव्वयं - सुव्रत, सुकहियं - भली प्रकार कथित, सुदि8 - सुदृष्ट, सुपइट्ठियं - सुप्रतिष्ठित, सुपइट्ठियजसंसुप्रतिष्ठित यश वाला, सुसंजमियवयणबुइयं - वचन पर पूर्ण नियन्त्रण रखने वाले पुरुषों द्वारा भाषित, सुरवर-णरवसभपवरबलवगसुविहियजणबहुमयं - उत्तम देव तथा नर-श्रेष्ठ बलवानों में उत्तम तथा नियमित जीवन व्यतीत करने वाले पुरुषों द्वारा भाषित, परमसाहुधम्मचरणं - उत्तम साधुओं का धर्माचरण रूप, तवणियमपरिग्गहियं - तप और नियमों से स्वीकृत, सुगइपहदेसगं - सुगति मार्ग का उपदेश करने वाला, विज्जाहरगगणगमणविज्जाणसाहकं - विद्याधर तथा आकाश-गमन विद्या का साधन, सग्गमग्गसिद्धिपहदेसगं - स्वर्ग-मार्ग तथा सिद्धि-मार्ग का प्रवर्तक, अवितहं - मिथ्यावाद का अभाव, तं - यह, सच्चं - सत्य वचन, उग्जुयं - सरल, अकुडिलं - कुटिलता रहित, भूयत्थं - सत् पदार्थ का कहने वाला, अत्थाओ - अर्थ, विसुद्धं - विशुद्ध, उज्जोयगरं - सत् पदार्थों को प्रकाशित करने वाला, पभासगं - कथन करने वाला, सव्वभावाण - समस्त पदार्थों का, जीवलोए - संसार में, अविसंवाइ - विसंवाद के दोष-रहित, जहत्थमहुरं - यथार्थ मधुर। भावार्थ - गणधर भगवान् सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि-हे जम्बू! दूसरा संवर-द्वार सत्य वचन है। सत्य वचन शुद्ध है, पवित्र है, कल्याण का कारण है, शुभ अर्थ का प्रकाशक है, सुभाषित है, सुव्रत, सुकथित, सुदृष्ट, सुप्रतिष्ठित एवं सुप्रतिष्ठित-यश युक्त है। सुसंयमशील मनुष्यों द्वारा बोला जाने वाला, उत्तम जाति के देवों, नरवृषभों एवं बलवानों में उत्तम तथा नियमित जीवन वाले महानुभावों द्वारा भाषित है। उत्तम साधुओं का धर्माचरण रूप है। तप और नियम के लिए परमावश्यक है। विद्याधर तथा आकाशगामिनी-विद्या का साधन भी सत्य वचन है। सत्य भाषण लोक में उत्तम है, स्वर्ग एवं मोक्षमार्ग दिखाने वाला है, एवं मिथ्यावाद से रहित है। सत्य-वचन सरल है, कुटिलता से रहित है, सत्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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