________________ 202 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 1 अ०५ ****************************************************************' आस्त्रवों का उपसंहार एएहिं पंचहिं असंवरेहि, रयमादिणित्तु अणुसमयं। चउविहगइपरंतं, अणुपरियटृति संसारे॥१॥ शब्दार्थ - एएहिं - इन, पंचहिं - पाँच, असंवरेहिं - आस्रवद्वारों से, रयं - कर्म रूपी रज का, अदिणित्तु - संग्रह करके, अणुसमयं - प्रति समय, चउविहगइपेरंतं - चार गति रूप, संसारे - संसार में, अणुपरियटृति - परिभ्रमण करता रहता है। भावार्थ - इन पाँच आस्रवद्वारों से आत्मा प्रतिसमय कर्म रूपी रज का संग्रह .करके, चार गति रूप संसार-सागर में परिभ्रमण करती रहती है॥ 1 // सव्वगइपक्खंदे, काहिंति अणंतए अकयपुण्णा। जे यण सुणंति धम्मं, सोऊण य जे पमायंति॥२॥ शब्दार्थ - सव्वगइपक्खंदे - सभी गतियों में गमनागमन, काहिंति - करते रहते हैं, अणंतए:अनन्त काल तक, अकयपुण्णा - पुण्य कार्य नहीं करने वाले, जे - जो, य - और, ण सुणंति - श्रवण नहीं करते, धम्मं - धर्म, सोऊण - सुन करके, पमायंति - प्रमाद करने वाले। भावार्थ - जो धर्म का श्रवण नहीं करते हैं जो सुन कर भी प्रमाद करते हैं, वे पाँच आस्रवों का निरोध रूप पुण्य-कार्य नहीं करने वाले जीव, अनन्त काल तक सभी गतियों में गमनागमन करते रहते हैं // 2 // अणुसिटुं वि बहुविहं, मिच्छदिट्ठिया जे णरा अहम्मा। . बद्धणिकाइयकम्मा, सुगंति धम्म ण य करेंति॥३॥ शब्दार्थ - अणुसिटुं - कही गई शिक्षा, बहुविहं - गुरु के द्वारा अनेक प्रकार से, मिच्छदिट्ठिया - मिथ्यादृष्टि, णरा अहम्मा - अधर्मी पुरुष, बद्धणिकाइयकम्मा - निकाचित कर्म बाँधने वाले, सुणंतिसुनते हैं, धम्म - धर्म, ण करेंति - आचरण नहीं करते। भावार्थ - जो मिथ्यादृष्टि और अधर्मी पुरुष हैं और निकाचित-कर्म बांधते हैं, वे गुरु के द्वारा * अनेक प्रकार से कही हुई शिक्षा सुन कर भी धर्म का आचरण नहीं करते। वे गुरु की शिक्षा की उपेक्षा करते हैं // 3 // 'आसवेहिं' पाठ भी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org