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________________ परिग्रह के पाश में देवगण भी बंधे हैं . 193 **************************************************************** नागकुमार, गरुड़ की ध्वजा वाले सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, ये भवनपति जाति के देव हैं। आणपन्निक, पाणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कुष्मांड और पतंग देव-ये व्यन्तर जाति के देव हैं। पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व, ये भी व्यन्तर देवों के भेद हैं। ये तिर्यक् लोक में निवास करने वाले हैं। ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के हैं। बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनिश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध और अंगारक (मंगल), तप्त-स्वर्ण के समान वर्ण वाले ये ग्रह, ज्योतिष चक्र में विचरते हैं और गति करने में आनन्द मानने वाले हैं, केतु आदि तथा अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, विविध प्रकार के संस्थान वाले तारागण, जिनकी दीप्ति स्थिर रहती है और जो अविश्रांत गति से मण्डल के रूप में विचरते हुए तिर्यक् लोक के ऊपर के भाग में रहते हैं। उड्डलोयवासी दुविहा वेमाणिया य देवा सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंदबंभलोए-लंतक-महासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुया कप्पवरविमाणवासिणो सुरगणा, गेविज्जा अणुत्तरा दुविहा कप्पाईया विमाणवासी महिड्डिया उत्तमा सुरवरा एवं य ते चउविहा सपरिसा वि देवा ममायंति भवण वाहण-जाणविमाणसयणासणाणि य णाणाविह वत्थभूसणा पवरपहरणाणि य णाणामणिपंचवण्णदिव्वं य भायणविहिं णाणाविहकामरूवे वेउव्वियअच्छरगणसंघाते दीव-समुहे दिसाओ विदिसाओ चेइयाणि वणसंडे पव्वए य गामणयराणि य आरामुज्जाणकाणणाणि य कूव-सर-सलाग-वावि-दीहिय-देवकुल-सभप्पववसहिमाइयाहिं बहुयाई कित्तणाणि य परिगिण्हित्ता परिग्गहं विउलदव्वसारं देवावि सइंदगा ण तित्तिं ण तुठिं उवलभंति अच्चंत विउललोहाभिभूयसत्ता वासहर-इक्खुगार-वट्टपव्वय-कुंडल-रुयगवरमाणुसोत्तर-कालोदहि-लवण-सलिल-दइपइ-रइकर-अंजणक-सेल-दहिसुहवपाउप्पाय-कंचणक-चित्त-विचित्त-जमकवर-सिहरकूडवासी वक्खार-अकम्मभूमिसु। शब्दार्थ - उड्डलोयवासी - ऊर्ध्व लोक में निवास करने वाले, दुविहा - दो प्रकार के, माणियावैमानिक, देवा - देव, सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलोयलंतगमहासुक्कसहस्सार आणयपाणयआरणअच्चुया - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण और अच्युत, कप्पवरविमाणवासिणो - इन कल्प विमानों में रहने वाले, सुरगणा - देव, गेविज्जा - ग्रैवेयक, अणुत्तरा - अनुत्तर, दुविहा - दो प्रकार के, कप्पाईया - कल्पातीत, विमाणवासी - विमान में रहने वाले, महिड्डिया - महान् ऋद्धिवाले, उत्तमासुरवरा - देवोत्तम, एवं इसी प्रकार, चउव्विहा - चार प्रकार की, सपरिसा - परिषद्युक्त, देवा - देव, ममायंति - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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