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________________ कर्मभूमि स्त्रियों का शारीरिक वैभव ****************************** ऊपर का ओष्ठ भी सुन्दर होता है, दधिदगरयकुंदचंदवासंतिमउलअच्छिद्दविमलदसणा- दाँत दही, जलकण, कुन्द, चन्द्र, और बासंती लता की कली के समान श्वेत तथा छिद्र रहित हैं, रत्तुप्पलपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा - कमल के लाल रंग के पुष्प समान वर्ण तथा पद्म-पत्र के समान कोमल उनका तालु और जीभ होती है, कणवीरमुउलकुडिलअब्भुण्णयउज्जुतुंगणासा - उनकी नासिका कणवीर के पुष्ट की कलि के समान सीधी, अग्रभाग कुछ ऊँचा उठा हुआ सरल और उच्च होती है, सारयणवकमलकुमुयकुवलयदलणिगरसंरिसलक्खणपसत्थ अजिम्हकंतणयणा - शरदऋतु के कमल, चन्द्रविकासी कुमुद और नील कमल के पत्तों के समान प्रशस्त लक्षण वाली सरल और अतिसुन्दर उनकी आँखें होती हैं, आणामियचावरइलकिण्हब्भराइसंगयसुजायतणुकसिणणिद्ध भुमगा- उनकी भ्रकुटी धनुष के समान वक्र और काले बादलों के समान कृष्ण वर्ण वाली कोमल तथा मनोहर होती है, अल्लीणपमाणजुत्तसवणा- कान सुन्दर और प्रमाणयुक्त होते हैं, सुस्सवणा- अच्छी श्रवण शक्ति वाले, पीणमट्टगंडलेहा - कपोल पुष्ट एवं शुद्ध हैं, चउरंगुलविसालसम- णिडाला - ललाट चार अंगुल प्रमाण विशाल और समतल होता है, कोमुइरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा- कोमुदी के रजनीकरकार्तिक पूर्णिमा की रात्रि के चन्द्रमा के समान परिपूर्ण एवं सौम्य उनका मुख होता है, छत्तुण्णयउत्तमंगामस्तक छत्र के समान उन्नत होता है, अकविलसुसिणिद्धदीहसिरया मस्तक के केश काले, लम्बे और स्निग्ध होते हैं । Jain Education International १८१ *** भावार्थ - भुजाओं का मूल - भाग (कांख ) वस्तिप्रदेश (योनि) और कपोल पुष्ट, उन्नत तथा परिपूर्ण होता है। उनकी गर्दन उत्तम शंख के समान चार अंगुल वाली प्रशस्त होती है। उनकी ठुड्डी पुष्ट एवं सुन्दर होती । उनके अधरोष्ठ अनार के फूल के समान लाल, कुछ लम्बा, संकुचित, पुष्ट एवं मनोहर होता है और ऊपर का ओष्ठ भी सुन्दर होता है । उनके दाँत दही, जलकण, कुन्द, चन्द्र और बसंती लता की कली के समान श्वेत निर्मल और छिद्र-रहित होते हैं। उनकी जिव्हा और तालु, रक्तकमल के समान लाल और पद्मपत्र के समान कोमल होता है। उनकी नासिका कणवीर के पुष्ट की कली के समान सीधी और सरल होती है। उसका अग्रभाग कुछ ऊँचा उठा हुआ होता है। उनकी आँखें शरदऋतु के कमल, चन्द्रविकासी कुमुद और नीलकमल के पत्तों के समान प्रशस्त लक्षण वाली सरल और अत्यन्त सुन्दर होती है। उनकी भृकुटी धनुष के समान वक्र और काले बादलों के समान काली, कोमल तथा मनोहर होती है। उनके कान सुन्दर और प्रमाणयुक्त तथा अच्छी श्रवण शक्ति से युक्त होते हैं। उनके कपोल पुष्ट तथा शुद्ध होते हैं। उनका ललाट चार अंगुल - प्रमाण विशाल तथा समा । उनका मुख कौमुदी (कार्तिकी पूर्णिमा) के चन्द्रमा के समान परिपूर्ण एवं सौम्य होता है और मस्तक छत्र के समान ऊँचा होता है। मस्तक के केश काले, लम्बे और चिकने होते हैं । छत्त - ज्झय-जूव - थूभ - दामिणि - कमंडलु - कलस - वावि - सोत्थिय-पडाग जवमच्छ-कुम्भ-रहवर - मकरज्झय- अंक - थाल - अंकुस - अट्ठावय- सुपइट्ठ- अमर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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