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________________ *********** बलदेव और वासुदेव के भोग *************** Jain Education International अनुभव करते थे । इस प्रकार सैकड़ों वर्षों तक भोगविलास करते हुए भी वे कामभोगों से अतृप्त रहे और मृत्यु को प्राप्त हो गए। विवेचन - इस सूत्र में बलदेव और वासुदेव के वर्णन में निम्न शब्द अन्य शास्त्रों में वर्णित घटनाओं का निर्देश करते हैं 1 - बलवगगजंतदरिय-दप्पियमुट्ठिय चाणूरमूरगा जो अपने बल के मद में अत्यन्त मदोन्मत्त होकर गर्जना करते रहते थे कि - " है कोई ऐसा बलवान् जो हमसे लड़ने का साहस करे ।" ऐसे मौष्टिक और चाणूर नाम के मल्ल, कंस के अधीन थे। उन मल्लों को कंस ने श्री बलराम और श्रीकृष्ण को मारने की आज्ञा दी। दोनों मल्ल, खम ठोक कर झपटे। बलरामजी ने मौष्टिक मल्ल को और श्रीकृष्ण ने चाणूर मल्ल को पछाड़ मारा और उन गर्वोन्मत्त मल्लों के दर्प को नष्ट कर दिया। रिट्ठवसहघाइणो- रिष्ट वृषभ - घातक । कंस के द्वारा मदोन्मत्त किये हुए और कृष्ण-बलराम को मारने के लिये छोड़े हुए रिष्ट नाम के वृषभ (साँड) को जिन्होंने मार डाला था। केसरिमुहविप्फाडगा - केसरी सिंह के मुँह को फाड़ देने वाले । यह घटना प्रथम वासुदेव त्रिपृष्टजी के जीवन से सम्बन्धित बताई जाती है। त्रिपृष्ट वासुदेव ने महान् उपद्रवकारी एवं प्रचण्ड सिंह के जबड़ों को पकड़ कर चीर डाला था। विकल्प में टीकाकार लिखते हैं कि यह घटना श्रीकृष्ण से सम्बन्धित भी है। उन्होंने कंस के केशी नाम के दुष्ट अश्व के मुँह को चीर कर मार डाला था । दरियणागदप्पणा - दप्तनाग-दर्पक। यमुना नदी में रहने वाले महान् विषधर काल नामक सर्प का - पद्म प्राप्ति के लिये- श्रीकृष्ण ने यमुना में प्रवेश करके मर्दन किया था । जमलुज्जल-भंजगा - मलार्जुन भंजक । श्रीकृष्ण ने अपने पिता के शत्रु यमल और अर्जुन नामं के विद्याधरों को-जो श्रीकृष्ण को मारने के लिये वृक्ष रूप बन गए थे, मार डाला था। महासउणिपूतणारिवू - महाशकुनि - पूतना- रिपु । महाशकुनी और पूतना नाम की दो विद्याधरं स्त्रियों के (जो श्रीकृष्ण को बालवय में मारने आई थी) शत्रु । कंस मुकुट - तोड़क और जरासंध मान-मर्दक। यह घटना भी श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित है और प्रसिद्ध हैं। १६९ - ********** भुज्जो मंडलिय - णरवरिंदा सबला सअंतेउरा सपरिसा सपुरोहिया मच्चदंडणायगसेणावइ - मंतणीइ - कुसला णाणामणिरयणविपुल- धणधण्ण-संचयणिहीसमद्धिकोसा रज्जसिरिं विउलमणुहवित्ता विक्कोसंता बलेण मत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं अवितत्ता कामाणं । शब्दार्थ - भुज्जो पुनः, मंडलियणरवरिंदो - माण्डलिक नरेन्द्र-नरेन्द्र मण्डल के अधिपति, सबला - बल से युक्त, सअंतेउरा - अंतःपुर से युक्त, सपरिसा परिषद्-राज्यसभा सहित, सपुरोहियामच्च - पुरोहित अमात्य - मन्त्री, दंडणायगसेणावइ मंतणीइ - दण्डनायक, सेनापति तथा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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