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________________ - अब्रह्म के गुण-निष्पन्न नाम १५१ **************************************************************** ३. चरंतं ४. संसंगिग ५. सेवणाहिगारो ६. संकप्पो ७. बाहणापयाणं ८. दप्पो ९. मोहो १०. मणसंखोभो ११. अणिग्गहो १२. वुग्गहो १३. विघाओ १४. विभंगो १५. विब्भभो १६. अहम्मो १७. असीलया १८. गामधम्मतित्ति १९. रई २०. रागचिंता २१. कामभोगमारो २२. वेरं २३. रहस्सं २४. गुज्झं २५. बहुमाणो २६. बंभचेरविग्यो २७. वावत्ती २८. विराहणा. २९. पसंगो ३०. कामगुणोत्ति वि य तस्स एयाणि एवमाइणि णामधेजाणि होति तीसं। शब्दार्थ - तस्स - उसके, णामाणि - नाम, गोण्णाणि - गुणनिष्पन्न, इमाणि - ये, होति - होते हैं, तीसं - तीस, तं जहा - वे इस प्रकार हैं, अबंभं - अकुशल अनुष्ठान-अप्रशंसनीय नहीं आचरण, मेहुणं- मैथुन-स्त्री और पुरुष दोनों के संयोग से होने वाला, चरंतं - विश्व व्यापक, संसग्गि - संसर्गीस्त्री और पुरुष के सम्पर्क से होने वाला, सेवणाहिगारो - सेवनाधिकार चोरी आदि अन्य पाप-कर्मों का प्रेरक, संकप्पो - संकल्प-मानसिक विचारों से उत्पन्न होने वाला-अब्रह्म की उत्पत्ति वैसे संकल्प विकल्प से ही होती है, बाहणापयाणं - बाधनापद-संयम स्थान या प्रजा के लिए बाधक, दप्पो - दर्प-देह का गर्व अथवा मदोन्मत्त-अपनी सफलता के दर्प से गर्वित, मोहो - मोह-मोहित करने वालावेदमोहनीय के उदय से उत्पन्न, मणसंखोभो - मनःसंक्षोभक-मानसिक शांति को नष्ट कर चंचलता बढ़ाने वाला, अणिग्गहो - अनिग्रहक-मन को खुला रख कर विषय में प्रवृत्ति कराने वाला, दुग्गहो - विग्रह, क्लेश एवं झगड़े का कारण, विधाओ - विघातक सद्गुणों को नष्ट करने वाला, विभंगो - . संयम का भंग करने वाला, विब्भमो - विभ्रम-अब्रह्म हेय है, उसे उपादेय समझने रूप भ्रान्ति उत्पन्न करने वाला, अहम्मो - अधर्म-श्रुत एवं चारित्र धर्म के प्रतिकूल होने के कारण अधर्म, असीलया - अशीलता-सदाचरण से रहित, गामधम्मतित्ति - ग्राम धर्म-जन-समूह द्वारा स्वीकृत-सेवित-शब्द रूपादि विषयों-कामगणों की इच्छा गवेषणा एवं सेवन रूप, रई - रति-मैथुन में प्रीति-रुचि, रागचिंता - मैथुन सम्बन्धी अनुकूलता एवं साधन प्राप्त करने की चिन्ता, कामभोगमारो - कामभोग मार-कामभोग रूपी मदन से मरण, वेर - वैर का कारण-वैरवर्द्धक, रहस्सं - रहस्य-छुपकर सेवन किया जाने वाला, गुझंगुप्त-गोपनीय, बहुमाणो - बहुजन द्वारा मान्य, बंभचेरविग्यो - ब्रह्मचर्य की विघातक, वावत्ती - व्यापत्ति:-सद्गुणों का नाशक, विराहणा - विराधना-चारित्र का भंजक, पसंगो - प्रसंग-स्त्री-पुरुष संगमभोगासक्ति, कामगुणोति - कामगुण-मदनोत्पादक-शब्दादि कामगुण में लुब्ध करने वाला, तस्स - उसके, एयाणि-ये, एवमाइणि - इस प्रकार के, णामधेज्जाणि - नाम, होति - होते हैं, तीसं - तीस। भावार्थ - इस अब्रह्म नामक पाप के गुणनिष्पन्न तीस नाम होते हैं। यथा - १. अब्रह्म २. मैथुन ३. चरंत (विश्व-व्यापक) ४. संसर्गी ५. सेवनाधिकार ६. संकल्प ७. बाधनापद ८. दर्प ९. मोह १०. मन:संक्षोभ ११. अनिग्रहक १२. विग्रहक १३. विघातक १४. विभंगक १५. विभ्रम १६. अधर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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