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पापियों को प्राप्त संसार-सागर
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तिरिक्खभूया - ऐसे पापी मनुष्यों को पशु के समान बतलाया है, जो संदाचार एवं सद्विवेक से शून्य हैं।
कामभोगतिसिया - उन पापी जीवों के हृदय में काम-भोग की तृष्णा बनी रहती है, उन्हें इच्छित काम-भोग प्राप्त नहीं होते। वे आशा-तृष्णा में ही जीवन बिताते हैं। इससे सिद्ध होता है कि आवश्यक साधनों का अभाव भी पाप का परिणाम है।
कोसिकारकीडोव्व - कोशिकार-वह कीड़ा जो अपनी लार से अपने को बन्दी बनाने वाले कोश का निर्माण करता है। मुंह से निकली हुई लार, तन्तु रूप बनती है और शरीर पर लिपट कर उस कीड़े (रेशम के कीड़े) को घेर कर बन्दी बना लेती है। इसी प्रकार पापाचरण से उत्पन्न कर्म-बन्धन, आत्मा को जकड़ लेते हैं।
पापियों को प्राप्त संसार-सागर एवं णरग-तिरिय-णर-अमर-गमण-परंतचक्कवालं जम्मजरामरणकरणगंभीरदुक्खपक्खुभियपउर सलिलं संजोगवियोगविचीचिंता-पसंग-पसरिय-वह-बंध-महल्लविपुल कल्लोलं कलुण-विलविय-लोभ-कलकलिंत बोलबहुलं अवमाणणफेणं तिव्वखिंसणपुलंपुलप्पभूय-रोग-वेयण-पराभव-विणिवायफरुस-धरिसण-समावडियकठिणकम्मपत्थर-तरंग-रंगंत-णिच्च-मच्चु-भयतोयपटुं कसाय-पायालसंकुलं भवसयसहस्सजलसंचयं अणंतं उळेवणयं अणोरपारं महब्भयं भयंकरं पइभयं अपरिमियमहिच्छ-कलुसमइ-वाउपडद्धम्ममाणं आसापिवासपायाल-काम-रइ-रागदोस-बंधणबहुविहसंकप्पविउलदगरयंधकारं मोहमहावत्त-भोगभममाणगुप्प-माणुच्छलंतबहुगब्भवासपच्चोणियत्तपाणियं पहाविय-वसणसमावण्ण रुण्ण-चंड-मारुयसमाहया मणुण्णवीची-वाकुलियभग्गफुटुं तणि? कल्लोल-संकुलजलं पमायबहु चंडदुद्रुसावयसमाहयउद्धायमाणगपूरघोरविद्धंसणत्थबहुलं अण्णाणभमंत-मच्छपरिहत्थं अणिहुतिंदिय-महामगरतुरिय-चरिय-खोखुब्भमाण-संतावणिचयचलंत-चवल-चंचलअत्ताण-असरण-पुव्वकयकम्मसंचयोदिण्ण-वजवेइज्जमाण-दुहसय-विवागघुण्णंतजलसमूहं।
शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, णरग-तिरिय-णर-अमर - नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति में, गमणपेरंतचक्कवालं - परिभ्रमण करते रहना-चक्कर लगाते रहना बाह्य परिधि है, जम्मजरामरणकरणगंभीर-दुक्ख - जन्म, जरा और मृत्यु के गम्भीर दुःख उत्पन्न करने रूप, पक्खुभियपउरसलिलं -
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