________________
१२८
********
Jain Education International
प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० ३
-
****************
-
समाप्त कर देने वाले लोहे के डण्डे से, उर-उदर- वत्थि परिपीलिया - छाती पेट और गुदा स्थान को विशेष रूप से पीड़ित करते हैं, मत्थंतहिययसंचुण्णियंगमंगा - अंगोपांग मथित हो कर चूर-चूर हो जाते हैं, आणत्तीकिंकरेहिं राजाज्ञापालकों के द्वारा, केइ कई, अविराहियवेरिएहिं बिना अपराध ही वैर रखने वाले, जमपुरिससण्णिहेहिं यम पुरुषों के समान, पहया - आहत-दुखी, ते वे, तत्थवहाँ - कारागृह में, मंदपुण्णा - अभागे, चडवेलावज्झपट्टपाराई थप्पड़, चमड़े के चाबुक, लोहे की कीलों से, छिवकसलत्तवरत्तणेत्तप्पहारसयतालियंगमंगा - चमड़े से मढ़ी हुई बेंत, चर्मलता तथा मोटी रस्सी के सैकड़ों प्रहारों से उसके अंगोपांग को, किवणा दीनता वाले, लंबंतचम्मवण वेयणविमुहियमणा - शरीर की चमड़ी उतर कर लटकने लगती है, घाव हो जाते हैं, उन्हें वेदना होती है, उनका मन विरक्त - उदास हो जाता है, घणकोट्टिम-णियल-जुयलसंकोडिय - मोडिया - लोहे के घण से मार कर उनके अंगोपांग तोड़ दिये जाते हैं, मोड़ दिये जाते हैं और संकुचित कर दिये जाते हैं, कीरंति करते हैं, णिरुच्चारा मल-मूत्र करना रोक दिया जाता है या रुक जाता है, एया - ऐसे, अण्णाअन्य भी, एवमाईओ इस प्रकार की, वेयणाओ वेदना, पावा पापी लोग, पावेंति - भोगते हैं ।
भावार्थ - शिष्य पूछता है कि वे कौन-से बन्धन हैं, जिसमें चोर जकड़े जाते हैं ? गुरुदेव बन्धनों का स्वरूप बतलाते हैं-चोर को पकड़ कर काष्ठ के खोड़े में बन्द कर दिया जाता है। उसके पांवों में लोहे की बेड़ी डाल दी जाती है। ऊँट, बकरे या भेड़ के बालों की रस्सी से या कुदंडक - काष्ठमय बन्धन जिसके सिरे पर रस्सी बांध कर कसा जाता है, मोटी रस्सी या लोहे की सांकल से जकड़ा जाता है, लोहे की हथकड़ी से हाथ बांध जाते हैं, चमड़े की पट्टी से पांव बांधे जाते हैं और अन्य बन्धनों से चोरों को बांध दिया जाता है। चोरों को बन्दीगृह के अधिकारियों द्वारा अनेक प्रकार के दुःख दिये जाते हैं। उनके अंगों को संकुचित किया जाता है, मोड़ दिया जाता है। वै दुर्भागी चोर पीटे जाते हैं। उन्हें काष्ठ के यंत्र में कस दिया जाता है, लोहमय पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है, तलघर में डाल दिया जाता है, अन्धकूप या गुप्त गृह में डाल दिया जाता है। किसी को खूंटे से बांध दिया जाता है, किसी को जूए में जोत दिया जाता है और किसी को चक्र (पहिये) में बांध कर घोर कष्ट दिया जाता है। उनके जंघा तथा मस्तक का मर्दन किया जाता है। किसी को खंभे से बांधा जाता है। किसी के पांव ऊँचे बांध कर ओंधा लटका दिया जाता है और इस प्रकार के अनेक दुःख दिये जाते हैं कि जिनसे उनके अंग-प्रत्यंग टूट जाते हैं। किन्हीं की गर्दन को झुका कर छाती से बांध दी जाती है, जिससे उनके श्वास लेने में कठिनाई होती है और उनका पेट व छाती वायु से फूल जाती है, आँतें ऊपर उठ जाती हैं और छाती में कम्पन होने लगती है। उनके अंगों को मोड़ कर तथा दबा कर भी पीड़ित किया जाता है। वे कठोर बन्धनों से बंधे हुए चोर लम्बे-लम्बे श्वास लेते हैं - हाँफते हैं। उनका मस्तक चमड़े की रस्सी से दृढ़ता से बांध दिया जाता है। उनकी जंघाओं को मोड़ा जाता है या चीरा जाता नामक काष्ठ के यंत्र से उनके घुटने आदि सन्धी स्थान बांधे जाते हैं, जिससे उन्हें असह्य वेदना होती
। चर्पट
-
-
-
***********
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org