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________________ ************************* क्रमांक ४२. विष्णुमय जगत् ४३. एकात्मवाद-अद्वैतवाद ४४. अकर्तृत्ववादी ४५. मृषावाद ४६. झूठा दोषारोपण करने वाले निन्दक ४७. लोभजन्य अनर्थकारी झूठ ४८. उभय घा ४९. पाप का परामर्श देने वाले ५०. हिंसक उपदेश - आदेश ५१. युद्धादि के उपदेश- आदेश ५२. मृषावाद का भयानक फल ५३. भगवान् से कहा हुआ ५४. उपसंहार • अदत्तादान नामक तीसरा अधशंद्वार ५५. अदत्त का परिचय ५६. अदत्त के तीस नाम ५७. चौर्य - कर्म के विविध प्रकार ५८. धन के लिए राजाओं का आक्रमण ५९. युद्ध के लिए शस्त्र - सज्जा ६०. . युद्धस्थल की वीभत्सता ६१. समुद्री डा ६२. ग्रामादि लूटने वालें ६३. चोर को बन्दीगृह में होने वाले दुःख ६४. चोर को दिया जाने वाला दण्ड ६५. चोरों को दी जाती हुई भीषण यातनाएं Jain Education International [11] पृष्ठ क्रमांक ७६ ६६. पाप और दुर्गति की परम्परा ६७. पापियों को प्राप्त संसार सागर ७६ ७७ ६८. पापियों के पाप का फल ७९ अब्रह्मचर्य नामक चौथा आस्त्रवद्वार ८५ ८७ ८९ ९० ९४ ७३. चक्रवर्ती नरेन्द्र के विशेषण ९७ ७४. चक्रवर्ती के शुभ लक्षण ९९७५. चक्रवर्ती की ऋद्धि १०२ ७६. बलदेव और वासुदेव के भोग ७७. अकर्मभूमिज मनुष्यों के भोग १०३ १०५ १०७ १०८ ************************* १२१ १२५ १२९ १३४ ६९. अब्रह्म के गुण-निष्पन्न नाम ७०. अब्रह्म सेवी देवादि ७१. चक्रवर्ती के विशिष्ट भोग ७२. चक्रवर्ती का राज्य विस्तार १११ ८१. परिग्रह का स्वरूप. ११२८२. परिग्रह के गुण-निष्पन्न नाम ११४ ८३. परिग्रह के पाश में देवगण भी बँधे हैं ११८ ८४. कर्मभूमि के मनुष्यों का परिग्रह ८५. विविध कलाएँ भी परिग्रह के लिए ८६. परिग्रह पाप का कटुफल ८७. आस्रवों का उपसंहार १५०. १५२ १५४ १५४ १५५ १५६ १५७ १६२ १७० ७८. अकर्मभूमिज स्त्रियों का शारीरिक वैभव १७७ ७९. पर- स्त्री में लुब्ध जीवों की दुर्दशा ८०. स्त्रियों के लिए हुए जन-संहारक युद्ध परिग्रह नामक पाँचवां अधर्म द्वार पृष्ठ १३६ १३९ १४४ For Personal & Private Use Only १८३ १८५ १८९ १९१ १९२ १९५ १९६ २०० २०२ www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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