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________________ *********** क्रमांक हिंसा नामक प्रथम अध्ययन विषयानुक्रमणिका आस्रव नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध क्रमांक १. प्राण- वध का स्वरूप २. प्राण - वध के नाम ३. पापियों के पापकर्म ४. जलचर जीवों का वध ५. स्थलचर चतुष्पद जीवों की हिंसा ६. उरपरिसर्प जीवों की हिंसा ७. भुजपरिसर्प जीवों की हिंसा ८. नभचर जीवों का वध ९. विकलेन्द्रिय और पशुओं की पीड़ा १०. हिंसा के कारण ११. ये दीन एवं असहाय प्राणी १२. पृथ्वीकाय की हिंसा के कारण १३. अप्काय की हिंसा के कारण १४. तेजस्काय की विराधना के कारण १५. वायुकाय की विराधना के कारण १६. वनस्पत्तिकाय की हिंसा के कारण १७. हिंसक जीवों का प्रयोजन १८. हिंसक जन १९. हिंसक जातियाँ २०. हिंसा का दुःखद परिणाम २१. नरक का वर्णन Jain Education International [10] पृष्ठ ३ ४ ६ ७ ७ २२. नैरयिकों का बीभत्स शरीर २३. नारकों को दिया जाने वाला लोमहर्षक दुःख २४. नारक जीवों की करुण पुकार ९ ९ २९. तिर्यंच योनि के दुःख १० | ३०. चौरेन्द्रिय जीवों के दुःख ११ ३१. तेइन्द्रिय जीवों के दुःख १३ | ३२. बेइन्द्रियों जीवों के दुःख १५ ३३. एकेन्द्रिय जीवों के दुःख १६ ३४. मनुष्य भव के दुःख १६ / ३५. उपसंहार १७ मृषावाद नामक दूसरा अधर्मद्वार १७ ३६. मृषावाद के नाम १९३७. मृषावादी २० ३८. मृषावादी - नास्तिकवादी का मत २३ | ३९. असद्भाववादी का मत २७ ४०. प्रजापति का सृष्टि-सर्जन २८ ४१. ईश्वरवादी **** ३२ ३६ २५. नरकपालों द्वारा दिये जाने वाले घोर दुःख ३७ २६. नारकों की विविध पीड़ाएँ २७. नारकों के शस्त्र २८. नारकों के मरने के बाद की गति For Personal & Private Use Only पृष्ठ.. ३१ ४२ 6 ४५ ४७ ५२ ५२ ५३ ५३ ५७ ५८ ६२ ६४ & 6 m 2 ६६. ६८ ७२ ७५ www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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