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________________ ९२ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० २ ********************************** बहुत ही, गोमियाणं - गाय आदि के पालकों को, धाउ-मणि-सिलप्पवालरयणागरे.- धातु, मणि, शिला, प्रवाल और रत्नों को, आगरीणं - खान खोदने वालों को, पुप्फविहिं - फूलों की विधि, फलविहिं - फल विधि मालियाणं - मालियों को, अग्घमहुकोसए - मधु की उत्पत्ति का स्थान-मधुकोष तथा मूल्य, वणचराणं- वनचरों को। भावार्थ - इस प्रकार मृषावादी लोग विवेकहीन होकर भैंसे, सूअर आदि जीवों की घात करने वाले वधिकों को साधते हैं, उन्हें परामर्श देते हैं। मृग, शशक आदि अन्य पशुओं को जाल में फंसाकर मारने एवं आजीविका चलाने वाले व्याधों (शिकारियों) को साधते हैं। उन्हें पशुओं को पकड़ने आदि की विधि तथा उनको प्राप्त करने का स्थान बतलाते हैं और उनको ऐसा परामर्श देते. हैं कि जिससे उनका कार्य सिद्ध हो जाये अर्थात् शिकारी लोग पशु-वध का पाप सरलता से कर सकें। इस प्रकार की शिक्षा वे मृषावादी जीव देते हैं। पक्षियों का शिकार करने वाले पारधियों को तीतर, बटेर, लावक, कपिंजल, कपोत आदि पकड़ने की चालाकीपूर्ण विधि बतलाते हैं। मच्छ, मगर, कच्छप और मछलियाँ आदि जलचर जीवों को पकड़ने-मारने आदि की शिक्षा देते हैं। समुद्रादि जलाशयों में घुसकर शंख, शीप (जिनमें मोती होते हैं) और कोड़ियाँ प्राप्त करने का परामर्श देते हैं और सपेरों को विविध प्रकार के फणिधर या बिना फण वाले साँप, अजगर पकड़ने को तैयार करते हैं। गोह, सेहक, शल्यक आदि भुजपरिसर्प को प्राप्त करने या मारने का मार्ग बतलाते हैं। पक्षियों और हाथियों, बन्दरों आदि को फंसाने की शिक्षा देते हैं। पोषक को सोता, मैना, मयूर, कोकिल, हंस और सारस आदि पक्षियों को प्राप्त कर पोषण करने आदि की विधि बतलाते हैं। आरक्षकों को अपराधियों का वध करने, पकड़ कर बन्दी बनाने और यातना देने की प्रेरणा देते हैं। चोरों और डाकुओं को चोरी और डकैती करके दूसरों का धन-धान्य और गाय-बैल आदि पशु लूट लेने को प्रेरित करते हैं। गुप्त रूप से विचरण कर टोह लेने वाले (और अवसर पाकर लूट लेने वाले) को ग्राम आकर (खान) नगर * और पट्टन आदि का भेद बतलाते हैं। गाँठकट्टों को, पथिकों को मार्ग में ही अथवा मार्ग के अन्त तक पहुँचते घात करने की चालाकी समझाते हैं। नगर रक्षकों को चोरी का भेद बतलाते हैं। गाय, बैल, घोड़ा आदि के अंगोपांग को चीरकर चिह्नित करने, बैल आदि बधिया (नपुंसक) करने, भैंस आदि के पेट में (विशेष दूध प्राप्त करने के लिए) वायु भरने, दूध दुहने पुष्ट बनाने, बछड़े का एक दूसरी गाय आदि से परिवर्तन करने, लोह-शलाका तप्त कर डाम लगाने, गोपालकों को गाड़ी हल आदि में बैलों को जोड़ने आदि अनेक प्रकार की पापकारी बातें बतलाते हैं। खान खुदाने वालों को लोहादि धातु, मणि, शिला और प्रवालादि रत्न का स्थान तथा प्राप्त करने की विधि बतलाते हैं। मालियों को विविध प्रकार के पुष्प-फलादि लगाने, उत्पन्न करने और विकसित करने की प्रेरणा करते हैं, विधि बतलाते हैं। वनवासी मनुष्यों को मधुकोष (शहद के छत्ते) जमाने और उनमें से मधु प्राप्त करने की शिक्षा देते हैं। मूल शब्द 'नकर' है, जिसका अर्थ किया है-'जहाँ कर (चुंगी) नहीं है।' किन्तु आजकल यह अर्थ लुप्त हो गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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