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________________ ८६ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०२ *************************************************** * अचोरियं करेंतं - जो चोरी नहीं करता, डामरिउत्ति- कलह करने वाला बतलाते हैं, एमेव - इसी प्रकार, उदासीणं - जो उदासीन-तटस्थ हैं उसे, दुस्सीलोत्ति - दुश्चरित्र-दुराचारी कहते हैं, परदारंगच्छइत्ति - पर-स्त्री के साथ गमन करता है, मइलिंति - मलिन करते हैं, सीलकलियं - शील से युक्त को, अयं - यह, गुरु-तप्पओ - गुरु तल्पक-दुर्विनीत अथवा गुरु-पत्नी गामी, अण्णे - अन्य-दूसरे, भणंति - कहते हैं, उवाहणंता - उपनन्त-प्रतिष्ठा या आजीविका का नाशक, मित्तकलत्ताई - मित्र की पत्नी का, सेवंति - सेवन करता है, लुत्तधम्मो - धर्मलुप्त-धर्मशून्य या धर्म रहित, इमोवि - यह, विस्संभवाइओ- विश्वासघाती, पावकम्मकारी - पापकर्म करने वाला, अगम्मगामी - अगम्यगामी, दुरप्पा - दुरात्मा, बहुएसु - बहुत ही, पावगेसु - पापों से, जुत्तोत्ति - युक्त हैं, जेपंति - कहते हैं, मच्छरी - मत्सरी-जलनशील-डाह करने वाला, भद्दगे - भद्रपरिणामी, गुणकित्तिणेह - गुण, कीर्ति, स्नेह, परलोय - परलोक की, णिप्पिवासा - इच्छा से रहित, अलियवयणदच्छा - झूठ बोलने में दक्ष-चतुर, परदोसुप्पायणप्पसत्ता - दूसरों पर दोषारोपण करने में आसक्त, वेलेंति - वेष्टयंति-लपेटते हैं, अक्खाइय बीएणं - अक्षतिक बीज-अक्षय दुःख के कारणभूत, अप्पाणं - आत्मा को, कम्मबंधणेण - कर्म-बन्धनों से, मुहरी - मुखरी-वाचालता, असमिक्खियप्पलावा - बिना सोचे वचन बोलने वाले। . भावार्थ - कितने ही लोग अधर्म से प्रेरित होकर राज्य-विरुद्ध बोलते हैं। दोषारोपण करते हैं। जो चोरी नहीं करता, उस पर वे झूठा दोष मढ़कर 'चोर' कहते हैं। तटस्थ एवं उदासीन व्यक्ति को वे लड़ाकू-झगड़ा करने वाला और क्लेश बढ़ाने वाला कहते हैं। वे सदाचारी को दुराचारी कहते हैं और कहते हैं कि - यह पर-स्त्री गामी है। इस प्रकार वे उसके जीवन को मलिन बतलाते हैं। उसकी प्रतिष्ठा गिराने का प्रयत्न करते हैं। किसी के लिए कहते हैं कि यह गुरु-दुर्विनीत (गुरु को कष्ट देने वाला) अथवा गुरु-पत्नी का भोग करने वाला है। कई लोग दूसरे की प्रतिष्ठा को नष्ट करने या आजीविका से वंचित करने के लिए यों कहते हैं कि - 'यह मनुष्य अपने मित्र की पत्नी से गमन करता है, यह धर्म-शून्य अथवा धर्मलोपक है, यह विश्वासघाती है, यह पापी है, यह अगम्यगामी (माता, भगिनी, साध्वी आदि के साथ गमन करने वाला) है। यह दुरात्मा (दुष्ट आत्मा अधम जीव) है और अमुक व्यक्ति बहुत-से पाप कृत्यों से भरा हुआ है। इस प्रकार दूसरों से डाह करने वाले, किसी का हित-सुख सहन नहीं कर सकने वाले जलनशील लोग, मिथ्या बोलते हैं। वे मिथ्यावादी लोग, भद्रपुरुषों को दोषी बतलाते हैं। वे स्वयं गुण, कीर्ति, स्नेह और परलोक की इच्छा से रहित होते हैं। वे मिथ्याभाषण करने में निपुण, दूसरों पर दोषारोपण करने में रत-आसक्त और बड़े वाचाल होते हैं। वे अक्षय-दृढ़तम कर्मबन्धनों से अपनी आत्मा को लिप्त करके जकड़ लेते हैं। विवेचन - कई लोगों में दूसरों की निन्दा करने की रुचि होती है। वे अपनी इस अधम रुचि के वशीभूत होकर सच्चे, सदाचारी और गुणवान् व्यक्तियों की भी निंदा करते हुए उन पर झूठे दोष मढ़ते हैं। उन्हें उन सद्गुणियों की प्रतिष्ठा एवं उन्नति सहन नहीं होती। वे दूसरों का उत्थान देखकर जलते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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