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- . निशीथ सूत्र
जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेत वा साइज्जइ॥३०॥
जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं लोद्धेण वा जाव पउमचुण्णेण वा उल्लोलेज वा उव्वट्टेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा साइजइ॥३१॥
जे भिक्खू अप्पणो कायंसि वणं सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइजइ॥३२॥
जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं फुमेज वा रएज वा फुतं वा रएंतं वा साइजइ॥ ३३॥
कठिन शब्दार्थ - कायंसि - शरीर पर, वणं - व्रण - घाव।
भावार्थ - २८. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव का आमर्जन या प्रमार्जन करे अथवा आमर्जन या प्रमार्जन करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ...
२९. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव का संवाहन करे या परिमर्दन करे अथवा संवाहन या परिमर्दन करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
३०. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव की तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन द्वारा एक बार या अनेक बार मालिश करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
३१. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव पर लोध्र यावत् पद्मचूर्ण - सुगन्धित द्रव्य विशेष के बुरादे को एक बार या अनेक बार मले - मसले अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
३२. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव को अचित्त शीतल या उष्ण जल से एक बार या अनेक बार धोए अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
३३. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए घाव को फूत्कार द्वारा स्फुटित करे या लाक्षारसमहावर आदि से रंगे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - शरीर औदारिक है, पांचभौतिक है। दाद, खाज, कुष्ठ आदि के कारण शरीर
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