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द्वितीय उद्देशक - उत्तरकरण-विषयक-प्रायश्चित्त
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भावार्थ - ९. जो भिक्षु अचित्त पदार्थ स्थित (चन्दन इत्रादि गत) गंध को सूंघता है या सूंघते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
पद मार्ग आदि बनाने का प्रायश्चित्त - जे भिक्खू पयमग्गं वा संकमं वा आलंबणं वा सयमेव करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥ १०॥ - जे भिक्खू दगवीणियं सयमेव करेइ करेंतं वा साइजइ॥ ११॥
जे भिक्ख सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा सयमेव करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥ १२॥
- जे भिक्खू सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलिं वा सयमेव करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥ १३॥ .
कठिन शब्दार्थ - संकम - संक्रम - कीचड़ आदि को लांघने का रास्ता, आलंबणंआलम्बन - कीचड़ तथा गड्ढे आदि को लांघने हेतु सहारा लेने के लिए - पकड़ने के लिए पूँज या सण आदि की रस्सी, सयमेव - स्वयं, खुद।
भावार्थ - १०. जो भिक्षु पैदल चलने का रास्ता, कीचड़ आदि को लांघने का मार्ग, कीचड़, खड्डे को लांघने में सहारा लेने हेतु रस्सी आदि के आलम्बन स्वयं बनाता है या बनाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
१५. जो भिक्षु पानी निकालने की नाली स्वयं बनाता है या बनाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ____१२. जो भिक्षु छींका अथवा छींके का ढक्कन स्वयं बनाता है या बनाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
१३. जो भिक्षु सूत अथवा डोरी से स्वयं चिलमिलिका बनाता है या बनाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
उत्तरकरण-विषयक-प्रायश्चित्त जे भिक्खू सूईए उत्तरकरणं सयमेव करेइ करेंतं वा साइजइ॥ १४॥ जे भिक्खू पिप्पलयस्स उत्तरकरणं सयमेव करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥१५॥
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