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निशीथ सूत्र
विवेचन - उपर्युक्त सूत्रों में आए हुए “फालियं गठियं करेइ" और "फालियं गठड" का आशय इस प्रकार समझना चाहिए। ____ फालियं गंठियं करेड़ - कपड़ा अधिक न फट जाय इसके लिए दी जाने वाली गांठ। ऐसे वस्त्र ग्रहण नहीं करना जिसके ऐसी गांठ देनी पड़े। नहीं मिलने या फट जाने पर तीन से ज्यादा गांठ नहीं लगाना।
- फालियं गंठेइ - ऐसा फटा हुआ भी नहीं लेना जिसे गूंथना पड़े। प्रयोजन से तीन स्थान पर गूंथा जा सके। यहाँ सूत्र ५१-५२ में गांठ का वर्णन और ५३-५४ में धागे से गूंथने का वर्णन है।
इन सूत्रों के बाद किसी-किसी प्रति में "विफालिय गांठ" के भी दो सूत्र मिलते हैं। परन्तु यह पाठ प्राचीन भाष्यादि की प्रतियों में नहीं मिलता है। एवं इसकी आवश्यकता भी नहीं है। ___ वस्त्र, पात्र के जीर्ण हो जाने पर नई उपधि ग्रहण करनी ही पड़ती है। पूर्व उपधि परठने योग्य होने पर ही नई उपधि ग्रहण करना शक्य है। ऐसी स्थिति में अनवस्था दोष निवारण की दृष्टि से मर्यादा रेखा आवश्यक है। यही मर्यादा रेखा डेढ महीने से अधिक अतिरिक्त . उपधि नहीं रखने के द्वारा बताई है। ____ इन सूत्रों का आशय भी पूर्वतन पात्र-विषयक सूत्रों की तरह है। साधु के मर्यादित, सुव्यवस्थित, नियमित एवं संयममय जीवन के सम्यक् निर्वाह की दृष्टि से इन सूत्रों में प्रतिपादित वस्त्र-ग्रथनादि-विषयक निर्देशों का अनुसरण अपेक्षित है।
गृल्यूम को उतरवाने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू गिहधूमं अण्णउत्थिएण वा गारथिएणं वा परिसाडावेइ परिसाहावेंतं वा साइजइ॥ ५८॥
कठिन शब्दार्थ - गिहधूमं - गृहधूम - रसोई घर में छत, दीवार आदि पर जमे हुए धूएं की पर्त, परिसाडावेइ - परिशाटन कराता है - उतराता है, दूर करवाता है।
भावार्थ - ५८. जो साधु रसोई घर में छत या दीवार आदि पर जमे हुए धूएं की पर्त को भन्यतीर्थिक द्वारा, गृहस्थ द्वारा परिशाटित कराता है अथवा परिशाटित कराते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
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