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विंश उद्देशक - प्रस्थापना में दोष प्रतिसेवन : प्रायश्चित्त आरोपण
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. इन सूत्रों में पलिउंचिअ - प्रतिकुंचन तथा अपलिउंचिअ - अप्रतिकुंचन शब्दों का आलोचना के साथ प्रयोग हुआ है। प्रतिकुंचन का अर्थ कपट, माया, छल या प्रवंचना है।
दोषों की आलोचना करते समय यहाँ दो प्रकार की मानसिकता का वर्णन है। आलोचना करने वाले की अन्तर्भावना जब विशुद्ध होती है तो वह निश्च्छल, निर्मल एवं मायारहित भावपूर्वक आलोचना करता है। ___ आलोचना करने वाले की अन्तर्भावना जब शुद्ध नहीं होती, उसमें कुछ न कुछ विकार बना रहता है तब वह आलोचना के साथ भी माया या प्रवंचना को जोड़ देता है। अर्थात् छलपूर्ण चतुराई के साथ वैसा करता है, जो उचित नहीं है। _इसी दृष्टि से इन सूत्रों में मायारहित आलोचना करने से कम प्रायश्चित्त तथा मायासहित आलोचना करने से अधिक प्रायश्चित्त होना अभिहित हुआ है।
भिक्षु मायायुक्त आचरण या प्रवृत्ति से सदैव अपने आपको बचाए रखे, उसका आचार सदैव माया, छल एवं कपट से विरहित हो, इन सूत्रों से यह प्रतिध्वनित होता है।
. प्रस्थापना में दोष प्रतिसेवन : प्रायश्चित्त आरोपण __जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अपलिउंचिय आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं, ठविएवि पडिसेवित्ता सेवि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया, पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुट्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं, पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए णिव्विसमाणे पडिसेवेइ सेवि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया॥ १७॥ ___ जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा (जहा हेट्ठा बहुसोवि) जाव आरुहेयव्वे सिया एयं पलिउंचिए॥ १८॥
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