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निशीथ सूत्र
एवं अन्यतीर्थी गृहस्थों के बचनों को सहन करना समुद्र की वायु के समान बताया है। यहाँ पर गृहस्थों से श्रावक-श्राविकाओं को स्पष्टतः अलग बताया है। इसी आधार से वाचना देनें में भी गृहस्थों से श्रावक-श्राविकाओं को अलग समझा जाता है।
के
सूत्र
भिक्षु जिनधर्म के परिपालक विज्ञ भिक्षुओं से ही वाचना ले, यह वांछित है। साथ ही साथ यह भी ज्ञातव्य है कि जिनधर्मानुयायी, बोधियुक्त, आगमवेत्ता श्रमणोपासकों या श्रावकों. से भी वाचना ली जा सकती है।
•. पार्श्वस्थ सह वाचना आदान-प्रदान विषयक प्रायश्चित
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जे भिक्खू पासत्थं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ २७॥ जे भिक्खू पासत्थं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ ॥ २८ ॥ जे भिक्खू ओसणं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ २९ ॥ जे भिक्खू ओसणं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ ॥ ३० ॥ जे भिक्खू कुसीलं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३१ ॥ जे भिक्खू कुसीलं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ ॥ ३२ ॥ जे भिक्खू णितियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३३॥
जे भिक्खू णितियं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ ॥ ३४ ॥
जे भिक्खू संसत्तं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३५ ॥
जे भिक्खू संसत्तं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ ३६ ॥
॥ णिसीहऽज्झणे एगूणवीसइमो उद्देसो समत्तो ॥ १९ ॥
२७. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन
भावार्थ
करता है।
२८. जो भिक्षु पार्श्वस्थ से वाचना लेता है अथवा लेने वाले का अनुमोदन करता है। २९. जो भिक्षु अवसन्न को वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है । ३०. जो भिक्षु अवसन्न से वाचना लेता है अथवा लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
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