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निशीथ सूत्र
प्रतिपदा है। ग्रीष्म का अर्थ गर्मी या गर्मी का मौसम है। ग्रीष्म के पूर्व लगा हुआ 'सु' उपसर्ग सुष्ठु - सुन्दर या सुहावने का द्योतक है। वैशाख मास में सुहावनी गर्मी होती है जो ज्येष्ठ और आषाढ में तीव्र हो जाती है। अत एव सुग्रीष्म प्रतिपदा का तात्पर्य वैशाख कृष्णा प्रतिपदा है। चौथी आषाढी प्रतिपदा है - इस प्रकार क्रम से चार प्रतिपदाएं हैं, यथा - १. आश्विन प्रतिपदा (कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा), २. कार्तिक प्रतिपदा (मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा), ३. सुग्रीष्म प्रतिपदा (वैशाख कृष्णा प्रतिपदा), ४. आषाढी प्रतिपदा (श्रावण कृष्णा प्रतिपदा)। ___ठाणांग सूत्र के चौथे ठाणे में चार प्रतिपदाओं को स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है। वहाँ उनके नाम इस क्रम से कहे हैं - "आसाढपाडिवए इंदमहपाडिवए कत्तियपाडिवए सुगिम्हयपाडिवए।" निशीथ भाष्य की गाथा ६०६५ में भी ऐसा ही क्रम कहाँ गया है यथा - "१ आसाढी २ इंदमहो 3 कार्तिक ४ सुगिम्हओ य बोद्धव्वो।
एते महा महा खलु एतेसिं चेव पाडिवया॥" ठाणांग सूत्र और निशीथ भाष्य की इस गाथा में कहा गया क्रम समान है। इनमें इन्द्र महोत्सव का दूसरा स्थान है जो आषाढ के बाद क्रम से प्राप्त आसोज की पूनम एवं एकम का होना स्पष्ट है। ___ स्कंध कार्तिकेय देव का महोत्सव कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा को ही मनाय जाना अधिक संभावित है। कार्तिक और कार्तिकेय शब्द परस्पर संबद्ध हैं। आगे के यक्ष तथा भूत महोत्सव क्रमश: मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा एवं वैशाख कृष्णा प्रतिपदा को मनाए जाते रहे हैं, यह संभव है।
• ये लोक महोत्सव हैं जो लौकिक मान्यताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न समय में भी मनाए जाते रहे हैं। इसलिए इनका जहाँ आगमों में उल्लेख हुआ है वहाँ सबमें मनाए जाने के समय की एकरूपता नहीं है, क्योंकि ये महोत्सव धार्मिक सिद्धान्तों पर आधारित नहीं है।
विहित काल में स्वाध्याय न करने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू पोरिसिं सज्झायं उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइजइ॥ १३॥ जे भिक्ख चाउकालं सज्झायं ण करेइ ण करेंतं वा साइज्जइ॥ १४॥
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