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एकोनविंश उद्देशक - महामहोत्सवों के प्रसंग पर स्वाध्याय विषयक.....
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१२. जो भिक्षु - १. आश्विनी प्रतिपदा (कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा) २. कार्तिक प्रतिपदा (मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा) ३. सुग्रीष्मिक प्रतिपदा (वैशाख कृष्णा प्रतिपदा) ४. आषाढी प्रतिपदा (श्रावण कृष्णा प्रतिपदा) - इन चार महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय करता है अथवा स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है।
ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। • विवेचन - लोक में भौतिक अभीप्साओं की पूर्ति हेत अनेक देवों को उद्दिष्ट कर बड़ेबड़े उत्सव मनाए जाते रहे हैं। देवों का अर्चन, पूजन, नैवेद्य, समर्पण, उनके आगे वाद्य वादन, नृत्य, गायन आदि किए जाते हैं। दिनभर खाने-पीने का क्रम चलता है। ऐसी स्थिति में वहाँ स्वाध्याय करना कदापि संगत नहीं है। स्वाध्याय तो उत्तम, प्रशस्त, स्वस्थ वातावरण में ही भलीभाँति होता है। कोलाहलमय वातावरण में स्वाध्याय करने से स्खलना भी हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि ऐसे अवसरों पर अनेक देवों का संचरण-विचरण होता रहता है। वे देव भिन्न-भिन्न स्वभाव युक्त तथा उनमें से कतिपय कौतुकप्रिय भी होते हैं। कुतूहलवश या स्वाध्याय में स्खलन होने पर वे उपद्रव भी कर सकते हैं।
अनेक स्थानों से अनेक लोग महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु आते रहते हैं, अनेक वापस लौटते रहते हैं यों बड़ा ही भीड़भरा, अशान्त वातावरण होता है, जो स्वाध्याय के लिए अनुपयुक्त है।
लोक में इन्द्र वर्षा का देव माना जाता है। उपयुक्त समय में यथेष्ट वर्षा के लिए इन्द्र' पूजा के रूप में बड़े-बड़े महोत्सव मनाए जाते रहे हैं। स्कंध-शिव के पुत्र माने जाते हैं, उन्हें देवों का सेनापति कहा जाता है। वे विपुल शक्तिशाली कहे गए हैं। उन्हें कार्तिकेय या स्वामी कार्तिकेय भी कहा जाता है। इष्ट लाभार्थ उन्हें प्रसन्न करने हेतु भी महोत्सव मनाए जाते रहे हैं। अन्य यक्षों और भूतों को उद्दिष्ट करके भी महोत्सव आयोजित होते रहे हैं।
ये चार महोत्सव क्रमशः - आश्विनी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, चैत्री पूर्णिमा और आषाढ़ी पूर्णिमा को समझने चाहिए।
आज भी अनेक लौकिक पर्यों पर देवोत्सव या मेले आयोजित होते हैं।
जिन चार महाप्रतिपदाओं का उल्लेख हुआ है, वे इन चारों ही प्रकार के देवों से संबद्ध हैं। इनमें प्रथम आश्विन प्रतिपदा है - अर्थात् आश्विन मास के पश्चात् आने वाली पहली प्रतिपदा - यानी कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा है। दूसरी कार्तिक प्रतिपदा है - अर्थात् कार्तिक मास के पश्चात् आने वाली पहली प्रतिपदा यानी मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा है। तीसरी सुग्रीष्म
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