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सप्तदश उद्देशक - प्रदर्शन एवं ध्वनिनिस्सरण विषयक प्रायश्चित्त
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प्रदर्शन एवं ध्वनिनिस्सरण विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू गाएज वा हसेज वा वाएज वा णच्चेज वा अभिणएज वा हयहेसियं वा हत्थिगुलगुलाइयं वा उक्किट्ठसीहणायं वा करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥ २५२॥
कठिन शब्दार्थ - अभिणवेज्ज - अभिनय करे, हयहेसियं - अश्व की भाँति आवाज करे - हिनहिनाए, हत्थिगुलगुलाइयं - हाथी के समान शब्द करे - चिंघाड़े, उक्किट्ठसीहणायंउत्कृष्ट सिंहनाद - सिंह के समान जोर से आवाज करता है। .
भावार्थ - २५२. जो भिक्षु गायन, हंसना, वाद्य बजाना, नाचना, अभिनय करना, हिनहिनाना, चिंघाड़ना या सिंहनाद आदि (दोषपूर्ण) क्रियाएँ करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु सहज रूप में जितेन्द्रिय होता है। उस द्वारा इन्द्रियों का वैसा ही उपयोग-प्रयोग किया जाता है, जिससे आत्मसाधना को बल मिले तथा जन-जन को धर्मानुप्राणित होने की प्रेरणा मिले। ___ मोहकर्म के उदय से कुतूहलवश विविध रूप में गाकर, अभिनयोपम भाव-भंगिमा प्रदर्शित कर, विभिन्न प्राणियों की ध्वनियों जैसी आवाजें निकालकर - यों प्रदर्शनात्मक उपक्रमों द्वारा लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करना उसके उदात्त व्यक्तित्व के विपरीत है। इसमें मानसिक हीन भाव का द्योतन है। अत एव वैसा करना दोषयुक्त है। भिक्षु को तो धीरता, गंभीरता, स्थिरतायुक्त वचनों द्वारा धर्म जागरणा हेतु वाक् प्रयोग करना चाहिए। सर्वत्र उसके व्यक्तित्व की गरिमायुक्त छटा प्रकटित रहे, यह आवश्यक है।
हाँ, इतना अवश्य है, धार्मिक भावों को सुन्दर, सरस रूप में लोगों तक पहुँचाने हेतु सीमित रूप में गान का उपयोग किया जाय तो यह अनुचित नहीं है। किन्तु 'जनरंजक' धर्मनिरपेक्ष गीत हो तथा गायन कला प्रदर्शन का लक्ष्य हो तो प्रायश्चित्त योग्य होता है।
पूर्व वर्णित ऐसी प्रवृत्तियाँ हैं, जिनसे जीव-विराधना आशंकित है, संयम की निर्मलता भी व्याहत होती है। आध्यात्मिक स्तर हल्का बनता है। . यहाँ इतना और ज्ञातव्य है, यदि कोई आपत्तिजनक स्थिति हो तो संयमोपपन्न जीवन के रक्षार्थ उस प्रकार विस्मायक ध्वनियाँ निकालना भी वर्जित नहीं है। किन्तु यह आपद्धर्म का विषय है।
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