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________________ प्रस्तावना आगम साहित्य सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग प्रभु महावीर के उपदेशों का नवनीत है। यह आगम साहित्य विषय सामग्री की अपेक्षा जितना विशाल एवं विराट है, उससे भी कई अधिक यह अर्थ गरिमा से मंडित है। इस आगम साहित्य में दार्शनिक चिंतन के साथ द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग, गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग आदि सभी विषयों का बड़ी सूक्ष्मता एवं गहनता के साथ चिंतन एवं अनुशीलन किया गया है। भारतीय साहित्य जगत् में जैन आगम साहित्य ही एक ऐसी विशेषता लिए हुए है, जो व्यक्ति को उसकी योग्यता (क्षयोपशम) के अनुसार आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए यथायोग्य आगम साहित्य उपलब्ध करवा सकता है। विशिष्ट क्षयोपशम वाले साधक द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग जैसे अति गहन आगम साहित्य का अध्ययन कर नवनीत प्राप्त कर सकते हैं, तो सामान्य साधक कथानुयोग जैसे सरल एवं सरस आगम साहित्य के माध्यम से संसार से निर्वेद भाव को प्राप्त कर संवेग की ओर आगे बढ़ सकते हैं। इस प्रकार यह साहित्य मान सरोवर रूप मुक्ताओं से भरा पड़ा है। आवश्यकता है साधके द्वारा हंस बुद्धि से इसमें अवगाहन करने की। अवगाहन करने पर उसे जीवन को चमकाने वाले अनेक आध्यात्मिक मोती उपलब्ध हो सकते हैं। जैन दर्शन में ज्ञान के साथ-साथ श्रद्धा और तदनुसार आचरण का भी अत्यधिक महत्त्व है। बिना सम्यक् आचरण के कोरे ज्ञान को सीसे की आँख की उपमा देकर इसे अनुपयोगी बतलाया गया है। इसीलिए चतुर्विध संघ (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका) के आचार-विचार, त्याग-तप आदि की साधना आराधना के लिए भी विपुल मात्रा में आगम साहित्य का निर्माण हुआ है, जिसकी आराधना करके साधक मोक्ष के अक्षय सुखों को प्राप्त कर सकता है। साधना के दौरान विवशता-लाचारी वश कदाच स्वीकृत व्रतों में दोष भी लग सकता है, यानी उत्सर्ग मार्ग के स्थान पर कभी अपवाद मार्ग का भी सेवन साधक के द्वारा हो सकता है, तो उस अपवाद मार्ग के सेवन से लगे दोषों के परिमार्जन के लिए प्रायश्चित्त आदि के द्वारा शुद्धिकरण करने के लिए विधि-विधानों की व्यवस्था भी जैन आगम-साहित्य में की गई है, ताकि साधक अपनी साधना को शुद्ध बनाये रख सके। इस प्रकार जैन आगम साहित्य अपने आप में सभी दृष्टियों से परिपूर्ण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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