________________
षोडश उद्देशक - पृथ्वी, शय्या एवं छींके पर आहार रखने का प्रायश्चित्त
३५७
पृथ्वी, शव्या एवं छक पर असर रखने का प्रायश्चित जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढवीए णिविसाद णिक्खिवंतं वा साइजइ॥ ३५॥ ___ जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा संथारए णिक्खिवइ णिक्खिवंतं वा साइजइ॥ ३६॥
जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वेहासे णिक्खिवइ णिक्खिवंतं वा साइज्जइ॥ ३७॥
कठिन शब्दार्थ - णिक्खिवइ - रखता है, वेहासे - विहायसि - आकाश में - अधर में (छींके या खूटी पर)।
__ भावार्थ - ३५. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार भूमि पर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
३६. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य, स्वाध रूप चतुर्विध आहार संस्तारक पर रखता है अथवा रखने वाले का अनुमोदन करता है।
३७. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य, स्वाध रूप चतुर्विध आहार आकाश में - छींके पर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - सामान्यतः भिक्षु पात्र में आहार ग्रहण करते हैं, उसी में रखते हैं। सुरक्षा, सुव्यवस्था की दृष्टि से ऐसा होना आवश्यक है, उपयोगी है। आहार संयम के उपकरणभूत शरीर के निर्वाह का अनन्य हेतु है। अत: उसके संदर्भ में अत्यन्त जागरूकता बरतना आवश्यक है। वह अस्वच्छ, म्लान एवं आरोग्य की दृष्टि से अशुद्ध न बने, ऐसा ध्यान रखा जाना आवश्यक है। अत एव ऐसी भूमि पर उसे रखना वर्जित है, जहाँ अनेक छोटे-बड़े जीव घूमते-फिरते रहते हैं। क्योंकि उनके स्पर्श से भूमि पर अशुचि परमाणु बिखरे रहते हैं, वे स्वयं भी मल-मूत्र उत्सर्जित करते हैं जिससे आहार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इसी प्रकार शय्या पर भी आहार को नहीं रखना चाहिए। क्योंकि उस पर उठने-बैठने से देह का पसीना, मैल आदि लगना संभावित है। अन्य जीवादि के हेतु भी वहाँ आशंकित हैं। आहार के स्निग्धांश भी लग सकते हैं, जिससे चीटियाँ आदि आ सकती हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org