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निशीथ सूत्र ................................................................... कदाचन् मोहोदयवश, मानसिक दुर्बलतावश साधु के मन में काम वासना का उत्पन्न होना आशंकित है। ___जहाँ सचित्त जल से युक्त हौद, कुंड, नल, घट, कलश इत्यादि हों, वहाँ भिक्षु का . ठहरना इसलिए वर्जित है कि आने-जाने में अप्काय की हिंसा की आशंका रहती है। साथ ही साथ यह भी संभावना हो सकती है कि कदाचन अत्यधिक तृषा - पिपासा होने पर भिक्षु के मन में कहीं सचित्त जल पीने की इच्छा उत्पन्न न हो जाए। __वैसे स्थान में भिक्षु को ठहरा हुआ देख कर गृहस्थों के मन में भी आशंका हो सकती है, कहीं भिक्षु इस जल का प्रयोग तो न करते हो।
- अग्नि युक्त स्थान दो प्रकार के हो सकते हैं - उनमें एक वह है जहां भट्टी, चूल्हा आदि जल रहा हो, दूसरा वह है जो जलते हुए दीपक से युक्त हो। दोनों ही स्थानों में अग्निकाय की विराधना की आशंका बनी रहती है। ..
जहाँ आग जल रही हो, अत्यन्त शैत्य में – 'शीतकाल में भिक्षु के मन में कहीं आग तापने का दूषित संकल्प न आ जाए। ___ जैसे बाढ़ आने से पूर्व उससे बचाव के लिए पाल बांधना, पूल बनाना आवश्यक है, उसी प्रकार जिन दोषों के सेवित होने की आशंका हो, वैसे कारणों को पहले से ही मिटा देना अपेक्षित है। इन सूत्रों में मूलतः यही भाव उद्दिष्ट हैं। ___इन सूत्रों में प्रयुक्त 'अणुपविसई - अनुप्रविशति' क्रियापद 'अनु' तथा 'प्र' उपसर्ग एवं तुदादिगण ने वर्णित परस्मैपदी 'विश्' धातु के योग से बना है। अनुप्रविशति का अर्थ किसी स्थान में बार-बार प्रवेश करना, निकलना, आना-जाना है। यह वहीं होता है, जहाँ व्यक्ति ठहरा हो, आवास कर रहा हो, इसलिए 'अनुप्रविशति' यहाँ ठहरने या आवास करने के अर्थ में प्रयुक्त है।
सचित्त इक्षु सेवन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू सचित्तं उच्छु भुंजइ भुंजतं वा साइज्जइ॥ ४॥ जे भिक्खू सचित्तं उच्छु विडंसइ विडसंतं वा साइज्जइ॥५॥ जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं उच्छु भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥६॥ जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं उच्छु विडंसइ विडंसंतं वा साइजइ॥७॥
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