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निशीथ सूत्र
उत्पन्न न हो, शुद्ध संयम पालन की दृष्टि से यह परम आवश्यक है। ये सूत्र इसी संयमोपवर्धक भाव के उद्बोधक हैं।
निशीथ भाष्य गाथा ४६४२ एवं चूर्णि की व्याख्या को देखने पर यह ज्ञात (स्पष्ट) होता हैं कि उपरोक्त २० सूत्र (१२ से ३१) के स्थान पर आठ सूत्र ही होने चाहिए। पहले चार सूत्र पुराने पात्र की अपेक्षा से हैं। इनसे भी पहले दो सूत्र जल से धोने के हैं और बाद के दो सूत्र कल्प आदि लगाने के हैं। इस तरह चार सूत्र बाद में दुर्गन्ध युक्त पात्र की अपेक्षा से हैं। कुल आठ सूत्र हैं। इनमें प्रथम सूत्र में "बहुदेसिएण" पद है और दूसरे सूत्र में "बहुदेवसिएण" पद है, यह भी चूर्णि व्याख्या से स्पष्ट हो जाता है। अतः इसी क्रम से आठ सूत्रों का होना उचित ध्यान में आता है।
भाष्य चूर्णिकार ने इतने ही सूत्रों का कथन करते हुए व्याख्या की है। इससे अधिक सूत्रों का होना संभव नहीं लगता है।
अकल्प्य स्थानों में पात्र आतापित-प्रतापित करने का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा . आया-तं वा पयावेतं वा साइज्जइ॥ ३२॥
जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेतं वा साइज्जइ॥ ३३॥
जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेंतं वा साइज्जइ॥ ३४॥
जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेतं वा साइज्जइ॥ ३५॥ . जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेंतं वा साइजइ॥३६॥
जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेतं वा साइजइ॥३७॥ ।
जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज वा आयातं वा पयावेंतं वा साइज्जइ॥ ३८॥
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