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चतुर्दश उद्देशक - पात्र परिकर्म (सज्जा) विषयक प्रायश्चित्त
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उसे सुन्दर, सुहावना या आकर्षक बनाने का उपक्रम न करें, उस पर सुन्दर रंग आदि न पोते, क्योंकि ऐसा करना भिक्षु की पात्र के संबंध में आसक्ति या ममत्व का द्योतक है, जो संयम में बाधक है। भिक्षु द्वारा ऐसा किया जाना प्रायश्चित्त योग्य है।
पात्र परिकर्म (सजा) विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेंतं वा साइज्जइ॥ १२॥
जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट लोद्रेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उच्छोलेज वा उव्वलेज वा उच्छोलेंतं वा उव्वलेंतं वा साइज्जइ॥ १३॥
जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइजइ॥ १४॥
जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट बहु(दि)देवसिएण(वा) तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मवखेंतं वा भिलिंगेंतं वा साइज्जइ॥ १५॥
जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट बहुदेवसिएण लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज वा उव्वलेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा साइज्जइ॥ १६॥ __ जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्ट बहु देवसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ॥ १७॥
जे भिक्खू सुब्भिगंधे पडिग्गहे लद्धेत्ति कट्ट दुब्भिगंधे करेइ॥१८॥ जे भिक्खू दुब्भिगंधे पडिग्गहे लद्धे त्ति कट्ट सुब्भिगंधे करेइ॥ १९॥
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